जंग का मैदान, मन है शैतान

हाँ मुझे पता है इस बार काफी देर हुई है कोई पोस्ट करने में | मैं आलसी नहीं हूँ पर क्या करुँ बीच में हमारा तकनीकी महोत्सव, अपोजी आ गया और सबसे बड़ी दिक्कत यह रही कि कोई विषय ही नहीं मिल रहा था | पर आज अंततः मेरी और मेरे प्रिय दोस्तों की एक ना छूटने वाली आदत ने मुझे इस विषय पर लिखने को उकसाया [उकसाया ? हाँ सही शब्द है :)] है |
तो पढिये और जंग लड़ते रहिये अपने दिल और मन के बीच |

यह जंग रात को सोते ही शुरू हो जाती है | यह जंग वो जंग है जो हर छात्र को लड़ना पड़ता है [ अपवाद हर जगह हैं और यहाँ पर अपवाद में घोटुओं को शामिल करता हूँ ]
हाँ तो यह जंग क्या है ? क्यों है ? कैसे शुरू होता है ? कैसे ख़तम होता है ? यह सब मैं अभी बताता हूँ | आप तो अभी से ही मेरे पोस्ट के साथ लड़ाई करने लगे | सब्र का फल मीठा होता है.. हौले हौले चलिए ज़रा |

रात को सोते ही.. ओह्ह माफ़ कीजियेगा.. जब हम सोते हैं वो रात नहीं, सुबह मानिए बस पौ फटने को आतुर ही होता है और हमारी आँखें मानों गुस्से से हमारे कंप्यूटर को घूरते हुए कह रही हो, ” अरे निकम्मे, जब तू नहीं था तो कम से कम मेरा टाइमटेबल सही तो चलता था | मुआ तेरे आते ही यह इंसान आलसी, निशाचर और बावरा हो गया है | हह, अपने आपको टेक्नोलॉजी फ्रीक बताता है | मैं तो बोलती हूँ की पूरा फ्रीक है, पर टेक्नोलॉजी में नहीं दिमाग से | काश तू ना होती तो कितना सुकून होता | कोई लौटा दे.. कोई लौटा दे |”

बस इतनी लम्बे भाषण के बाद तो कंप्यूटर भी शर्म के मारे कुछ नहीं बोलता है और स्लीप मोड में पहुँच जाता है | और जैसे ही उसकी आँखें हुई बंद, यहाँ इस शरीर का सिस्टम भी शट डाउन हो जाता है | और किसी तरह सुबह( हाँ, अब तो मैंने भी सही शब्द का इस्तेमाल किया है ! ) के 4-5 बजे हम नींद के भवसागर में गोता लगा चुके होते हैं |
जनाब ये तो हर कॉलेज की आम और मेन्टोस ज़िन्दगी है | यहाँ दोनों में कोई अंतर नहीं है | चाहे कितना भी मेन्टोस खा लें, दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आएगा हाय यह पापी कंप्यूटर !!

खैर जंग तो अब शुरू होती है | नींद लगी नहीं की यह वार्तालाप शुरू हो जाता है | अंत तक एक युद्ध में बदल कर एक लम्बी विराम बन जाता है : ( वार्तालाप दिल और मन के बीच हो रहा है, आइये देखें कौन जीतता है | )

दिल – ओये यार, सुबह 9 बजे तो लेक्चर है |
मन – तो ?
दिल – अरे, तो मतलब ? जाना नहीं है ?
मन – ओये रुक एक मिनट, कान से किटर-पिटर निकालने दे | सही से सुनाई नहीं दे रहा है |
[ कुछ छिकिर-छिकिर के बाद ]
मन – हाँ, अब बता लाले क्या कह रहा था |
दिल – मैं यह याद दिला रहा था कि कल सुबह 9 बजे लेक्चर है, तो जाना है ना ?
मन – ओये तू हाथी** का डेटाबेस ले कर चलता है क्या ? जो तुझे हर लेक्चर का टाइम याद है ?
दिल – अरे तू इतना गुस्सा क्यों हो रहा है ?
मन – अरे छड्ड यार, मतलब याद दिलवाने को भी तेरे पास ये है ? अगर किसी का जन्मदिन याद दिलवाता तो कितना अच्छा होता | वैसे भी हाथों ने कल ही कहा मेरे को कि बहुत खुजली मच रही है | किसी को मारना है उसे | तुझे कितनी दुआएं मिलती | कम-स-कम टेस्ट के समय तो वो दुआएं लगती और तू चलता और इस मुए आलसी शरीर के कुछ नंबर-शम्बर आ जाते |
दिल – अरे यार तू तो अभी से ही बद्दुआएँ दे रहा है | मैंने क्या गलत कहा ? अब यहाँ पर पढने नहीं आये तो क्या मच्छर सेकने आये हैं ?
मन – ओये तू मेरा दिमाग ना खा | वैसे भी कमबख्त नींद आ रही है | वो आँखें रो रही हैं | सुनाई नहीं देता क्या ? सुबह उठ कर देखते हैं | मिलकर फैसला कर लेंगे की क्या करना है | अभी अपनी बत्ती बुझा और लाईट ले कर सो जा | शुभरात्री | शब्बाखैर |

और इन्हीं यादों में एक छात्र के नींद को आराम मिलता है | और यह सपना उसके लिए सुबह तक [अब 4 से 9 में क्या सुबह ? क्या रात ? हाँ ] चलता रहता है |

सुबह आँखों के दरवाज़े पर अलार्म घड़ी की दस्तक होती है | आँख मन ही मन !@#$%^& देता हुआ कहता है – “कमबख्त, फिर से गया | लगता है नेहरुजी के वचनों पर चलता है “आराम हराम है” | अब अगर है तो अपने आराम को हराम रखो ना | नेहरूजी ने यह थोड़े ही कहा था कि दूसरों का आराम हराम है |
खैर कुछ ज्यादा कीच-कीच ना करते हुए वो खुलता है और हाथों को इशारा करते है, “कमबख्त के सर पर एक मारो ज़रा |” हाथ आज्ञा का पालन करते हुए धीमे से मारता है और फिर से चद्दर के अन्दर छुप जाता है |

पर रुकिए मेरे दोस्तजंग अभी बाकी है

अब चूँकि नींद थोडी उड़ चुकी होती है तो दिल और मन फिर से अपनी राम कहानी शुरू करते हैं |
दिल – चलें ?
मन – नहीं रे | अभी नहीं लगी है |
दिल – लगी है ? क्या ?
मन – हाँ ? संडास जाने की बात कर रहे हो ना ?
दिल – ओये बेवकूफ | मैं वहां नहीं लेक्चर जाने की बात कर रहा हूँ |
मन [अचंभित, शर्माते और गुस्से में] – ओह्ह नहीं फिर से सपने वाला राग मत अलापो | सोने दो |
दिल – कहा था ना मैंने, यहाँ पर पढने के लिए आये हैं | न कि सोने के लिए | और याद है टेस्ट-1 ? कितने नंबर ला पाए थे ?
मन – टेस्ट-1 ? कौन सा ? किसका ? मुझे कुछ याद नहीं है |
दिल – कोई नहीं | मैं अपना डेटाबेस खोल के बताता हूँ |
मन – अरे नहीं-नहीं रहने दो | यहाँ पब्लिक पढ़ रही है | बदन पर जो कुछ बचा है उसे मत उतारो |
दिल – हाँ अब आये ना लाइन पे | तो चलें ?
मन – हम्म | एक मिनट | टाइम क्या हुआ है ?
दिल – अभी 8:40 हुए हैं | अभी भी 20 मिनट बाकी है |
मन – क्या ??????? सिर्फ 20 मिनट ?
दिल – क्यों क्या हुआ ?
मन – अब तो लाईट ले लो | 20 मिनट में इस हॉस्टल से लेक्चर हॉल नहीं पहुँच सकते |
दिल – क्यों नहीं ?
मन – अरे कितना काम करना पड़ेगा | उठो, मंजन करो, मुंह धोओ, “वहां” जाओ, नाश्ता करो और फिर चलकर [साइकिल पहले साल में अंतिम बार ठीक करवाई थी | अब तो लोहे के भाव ही बिकेगा बेचारा] लेक्चर हॉल | नहीं पहुँच पाएँगे
दिल – ये क्या बात हुई ? अगर आज टेस्ट होता तो 8:55 पर उठकर भी पहुँच जाते |
मन – वही तो | आज टेस्ट नहीं है ना | मस्त रहो |
दिल – नहीं | कुछ बहाने बाजी नहीं चलेगी | चलो |
मन – लेकिन फायदा क्या है ?
दिल – अरे फायदा ? अच्छा विषय चल रहा है | चलो |
मन – हाँ पिछले बार भी नहीं गए थे | तो इस बार भी कुछ नहीं समझ आएगा | छोड़ो यार |
दिल – देखो तुमने 5 मिनट बेकार में ही गँवा दिए | अब ज्यादा चूं-चपड़ मत करो और चलो |

अब जैसे ही मन ने सुना कि 5 मिनट ख़राब हो गए हैं, उसे तो जैसे लगा की अब कोई हालत में लेक्चर नहीं जाया जा सकता है और यह सोचते हुए :
मन – देखो अब तो पहुँच ही नहीं सकते हैं | ऐसा करते हैं, अगले घंटे वाले लेक्चर में चलते हैं | अभी बहुत नींद आ रही है | और इतना कहते हुए ही वह झट बिस्तर के अन्दर रफूचक्कर हो गया |
और बेचारा :
दिल मन मन मन मन चलो चलो चलो !!!!!!
यही कहता हुआ वह भी निढाल पड़ गया |

और अगले घंटे वाली क्लास के लिए आँखों ने धोखा दे दिया | 2 घंटे बाद वो खुली और शरीर मेस की ओर दिन का खाना खाने को चल पड़ा |

**हाथी, मेरा एक दोस्त है जिससे सब इसलिए परेशान हैं क्योंकि उसे सबके मोबाइल नंबर, रूम नंबर. गर्ल फ्रेंड [दूसरों के जनाब] के मोबाइल नंबर, इत्यादि, इत्यादि [ओह्ह यह इत्यादि वाली लिस्ट बहुत लम्बी है इसलिए यहीं पर ख़तम कर रहा हूँ ] बहुत याद रहते हैं | अब आप पूछ रहे होंगे की इसमें परेशानी क्या है? कोई परेशानी नहीं | पर जब बात किसी के जन्म तिथि की आती है तो वह भी हाथी के डेटाबेस में सालोंसाल तक सुरक्षित है और यहीं पर पंगे हो जाते हैं | क्योंकि आपको खबर होगी की कॉलेज वगैरह में जन्मदिन पर ही इंसान सबसे दुखी हो कर सोचता है किफूटी किस्मत, आज ही जन्म लेना था |” साहब इतनी मार पड़ती है पिछवाड़े में, की दो दिन इंसान करवटें बदल बदल कर भी नहीं सो पाता है | तो इसलिए हाथी से सब परेशान हैं |

3 thoughts on “जंग का मैदान, मन है शैतान

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s