सुधीर और सलोनी एक ही कॉलेज से पढ़े थे और एक दूसरे को कॉलेज के दिनों से जानते थे..
पसंद एक दूसरे को दोनों करते थे पर कभी इज़हार नहीं किया.. एक दूसरे के बोलने का इन्तज़ार करते रहे..
एक बार सलोनी किसी व्यावसायिक यात्रा पर सुधीर के शहर आई तो दोनों ने मिलने का कार्यक्रम तय किया..
दोनों मिलकर बहुत खुश हुए और कुछ वक्त गुजरने के बाद दोनों ने लॉन्ग ड्राईव पर जाने की सोची..
कार में दोनों चल पड़े और कुछ देर में सुधीर का मोबाइल बजा.. उसने अनायास ही कार चलाते-चलाते मोबाइल उठा कर बात शुरू कर दी कि अचानक से सामने चल रही ट्रक ने ब्रेक लगा दिए..
इससे पहले कि सुधीर कुछ समझता.. उसकी कार भिड़ चुकी थी..
अस्पताल में जब आँखें खुली तो पता चला कि सलोनी इतनी बुरी तरह से ज़ख़्मी हुई है कि बस अब जान मात्र ही बची है.. न सुन सकती है, न देख सकती है, न बोल सकती है.. जिंदा लाश बन गयी थी वो..
सुधीर अपनी जिंदगी को कोसते हुए उस एक लम्हें को तलाशता रहा जब वह सलोनी को फिर से जिंदगी दे सके, अपने दिल की बात कह सके..
और सलोनी अपनी किस्मत पे तरस खाते हुए उस एक लम्हें को तलाशती रही जब वह अपने दिल की बात सुधीर को बता सके..
पर अब ऐसा नहीं हो सकता था…
उस एक लम्हें की एक छोटी सी भूल, एक छोटा सा लम्हां, आज दोनों को बेबस और अपंग बना गया था..
बेहद मार्मिक किन्तु सचेत करता हुआ आलेख।
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सही सिख दिया है तुमने. पर मैं इससे पूरी तरह सहमत नहीं हूँ. कभी-कभी दिल की बात कह देने से रिश्ते और बिगड़ जाते हैं. उसके बाद ऐसा अफ़सोस होता है की काश मैंने ये सब न बोला होता, काश सब कुछ पहला जैसा हो जाये! जरुरी नहीं की हमारे दिल में जो है, वो सामने वाले के भी दिल में हो.
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ek lamhen me zindagi yun badalti hai … to laaparwahi kyun !
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… ufffff … behad maarmik chitran … prabhaavashaalee post !!!
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सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद….
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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बेहद मार्मिक आलेख।
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बहुत बढ़िया सचेत करता आलेख।धन्यवाद।
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Bahut Khubsurat Abhivyakti.
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बड़ी मार्मिक कहानी,
मन को मत रोको, बह जाने दो,
कह पाये जो, कह जाने दो।
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यदि ये दुर्घटना शादी के बाद होती तो क्या सुधीर सलोनी को छोड़ देता ?
सलोनी के इन हालातों में सुधीर द्वारा प्यार का इज़हार करना और सलोनी को एक पत्नी के रूप में अपनाना कहानी का सही और मानवीय end होता.
वैसे भी दुर्घटना का कारण सुधीर की गाड़ी चलाते वक़्त लापरवाही थी.
end पर पुनर्विचार करियेगा
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दुखद स्थिति तक पहुँचाने वाली गलती जहाँ से कोई वापसी नहीं होती…काश हो पाए…
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प्रिय बंधुवर प्रतीक माहेश्वरी जी
नमस्कार !
आपके ब्लॉग की कई प्रविष्टियां अच्छी हैं । ब्लॉग ख़ूबसूरत भी है … बधाई !
एक लम्हा मर्मस्पर्शी लघुकथा है …
एक लम्हा … एक पल … एक क्षण … बहुत महत्वपूर्ण है भाई ।
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
– राजेन्द्र स्वर्णकार
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दर्दनाक अंत लिए मर्मस्पर्शी कथा.
प्रवीण जी की बात दोहराते हुए-
-मन को मत रोको, बह जाने दो,
कह पाये जो, कह जाने दो।
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रचना से हट कर नववर्ष की ढेरों हार्दिक शुभभावनाएँ.
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नये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
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स्थिति चाहें जो हो ये गलती नहीं करना था ।बेहद मर्मस्पर्शी !
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मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं……..
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