संगीत के क्षेत्र में गुरूजी ने बहुत नाम कमाया था.. कई देशों और महफ़िलों की शान रह चुके थे वो..
अब उनकी तमन्ना थी की उनकी दोनों बेटियाँ भी संगीत के क्षेत्र में उनकी तरह नाम करे और समाज और देश का भी सर ऊँचा करे..
अच्छे ख्यालों से उन्होंने दोनों बेटियों को संगीत की शिक्षा-दिक्षा देनी शुरू की..
बड़ी बेटी का तो खूब मन लगता था और पिताजी की एक आवाज़ में ही वह आ कर रियाज़ के लिए बैठ जाती पर छोटी वाली को यह पसंद नहीं आता था..
कई बार डरा कर बुलाना पड़ता तो छोटी वाली बहुत सहम जाती पर कुछ कर नहीं सकती थी.. उसका सहमा हुआ चेहरा उसके पिता को नहीं दिखता था..
कुछ सालों तक ऐसा चलता रहा और छोटी के अंदर रोष और गुस्सा बढ़ता रहा पर बोला उसने कुछ नहीं.. पिताजी ज़बरदस्ती करके रियाज़ के लिए बिठा लेते और उसे बैठना पड़ता..
पर एक दिन वो भरा हुआ ज्वालामुखी फट पड़ा.. छोटी रियाज़ से उठ खड़ी हुई और पिताजी पर बरस पड़ी.. बोली-“नहीं करना मुझे रियाज़, मुझे संगीत में रूचि नहीं है.. क्या आपको यह बात इतने सालों में समझ नहीं आई? केवल ज़ोर देने से मैं संगीत नहीं सीख सकती.. मेरी दूसरी कलात्त्मकता को आपके ज़ोर-ज़बरदस्ती ने मौत की घूँट पिला दी है.. आपने मेरी जिंदगी के कई विकासशील सालों को बर्बाद कर दिया है”
इतना कहकर वह रोने लगी और पैर पटकती हुई कमरे से चली गयी..
बड़ी और गुरूजी भौंचक्के से बैठे देख रहे थे..
गुरूजी कभी बड़ी को देखते और कभी दरवाज़े की ओर.. सोच रहे थे परवरिश तो दोनों की एक ही हुई है फिर यह बदलाव कैसा?
पर उनके ज़हन में यह बात नहीं आई कि सभी इंसानों को एक ही तराज़ू में नहीं तोला जा सकता..
जाते-जाते मेरा रिकॉर्ड किया हुआ एक गीत सुनते जाइए: चाँद सिफारिश (फ़ना)
एक ही तराजू पर सबको तौला नहीं जा सकता …अनजाने ही सही एक ही घर में दो बच्चों के बीच बार तुलना उन्हें तनाव देती ही है ..
सार्थक सन्देश देती रचना !
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aksar log yah bhool karte hain aur apni marzi daal dete hain , phir to jwalamukhi ko fatna hi hai
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मामला, तारे जमीं पर और थी्र ईडियट जैसा.
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वाह, बहुत ही सुन्दर गाया है।
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ऐसा मध्यम वर्गीय परिवार में अक्सर देखा जाता है. मुझे संगीत में रूचि थी, लेकिन माँ पापा को पढ़ाई में.
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सच जओ लो अपनी इच्छा दूसरों पर नहीं लादना चाहिए। आज की चूहादौड़ में यही हो रहा है कि माता-पिता अपने बच्चों पर अव्वल आने का दबाव बनाए रकते है जिससे वो मानसिकता के शिकार हो जाते हैम।
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कहानी अच्छी हैं .गाना भी अब सुनती हूँ.
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प्रतीक ,गाना अच्छा गाया है.
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सच कहा … हर किसी का अपना अपना स्वाभाव अपनी अपनी पसंद होती है … गीत भी सुन्दर गया है …
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आपका गायन बहुत कर्णप्रिय लगा , शुभकामनायें
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इंसान और जानवर में येही फर्क है…इंसान को आप एक ही लाठी से नहीं हांक सकते…हर इंसान अपने आप में इश्वर की अनमोल कृति होता है…उसे अपने हिसाब से पनपने देना चाहिए…होता उल्टा है माँ बाप बच्चे को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं…जिसके फलस्वरूप अप्रिय स्तिथियाँ पैदा हो जाती हैं…बहुत अच्छा सन्देश देती है आपकी ये लघु कथा…बधाई.
नीरज
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सही कहा
जब हाथ की पंचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती तो दो इंसान एक से कैसे हो सकते हैं
सलार और सुगम शब्दों में बहुत गहरी बात
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gana pehli baar suna
acha laga
acha gaate hain aap
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किन्ही दो व्यक्तियों के विचार कभी भी १००% एक जैसे नहीं होते.
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बहुत सहज और अच्छा लेखन है लिखते रहें
शुभाशीर्वाद
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bahut khub…
sarthak sandesh
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आपका गायन बहुत सुमधुर लगा , शुभकामनायें…
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सार्थक सन्देश देती रचना,.
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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बहुत सही सन्देश दिया है.काश बच्ची पहले ही विद्रोह करने का सहस कर लेती.
गीत अभी नहीं सुन पा रही. फिर सुनूंगी.
घुघूती बासूती
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प्रतीक जी अभिवादन -सच कहा आप ने सब अंगुलियाँ भी कहाँ बराबर होती हैं एक ही कक्षा में पढने वाले सब चेले अलग गुरु जी एक
आभार
शुक्ल भ्रमर ५
एक ही तराजू पर सबको तौला नहीं जा सकता
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सच कहा..हर इन्सान की अपनी अलग कलात्मक रुचि होती है…
गायन पसंद आया …
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understanding each other is important
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प्रेरक कथा …
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना …
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All are not alike . It's not fair to judge everyone by their upbringing and similar circumstances.
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प्रतीक माहेश्वरी जी
पता ही नहीं चलता कि यह लघुकथा है या किसी हक़ीक़त के वाकये को आपने शब्द दिए हैं … बहुत ख़ूब !
लेखनी भी कमाल की और गला भी … माशाअल्लाऽऽहऽऽऽ…
आपकी सृजनात्मकता के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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Gajab ki shaili hai aapke lekhni ki.. badhai..
Sath mein badhai aapki mata dwara rachit rachanaon k prakashan ki…
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