कुत्ते की मौत

बहुत दिन हो गए नीचे वाली चंद पंक्तियों को.. मैं स्वतंत्रता दिवस का इन्तज़ार तो नहीं कर रहा था पर परिस्थितियों ने इस पोस्ट के लिए इसी दिन को मुनासिब समझा है..

क्या किसी को याद भी है कि आज से कुछ १ महीने पहले मुंबई में बम-ब्लास्ट्स हुए थे? शायद नहीं.. सबको हिना रब्बानी खार, राखी का बकवास, भारतीय क्रिकेट टीम के पस्त हालत और न जाने क्या क्या याद है पर यह बात सबके दिल-ओ-दिमाग से धूमिल हो चुकी है कि कई लोग १३ तारीख के हमले में मरे थे.. हमारी याददाश्त ही इतनी है.. क्या करें..

खैर यह दस्तूर तो चलता रहेगा.. जिसे कुछ करना है वो कुछ न कुछ ज़रूर करेगा और जिसे कुछ नहीं करना है, वह तो यमराज सामने आने पर भी कुछ नहीं करेगा (दरअसल तब तो वो सही में कुछ कर ही नहीं सकता.. पर कहने को कह रहा हूँ)

और रही बात यह कविता की तो यह संबोधित कर रहा है इस देश के नेताओं की नज़रों में आम आदमी को..

इस बार तो चमत्कार ही हो गया
आतंकवादी बर्बाद हो गया

हर साल की तरह इस साल भी वो दबंग बन के देश में आये
और मनमानी से जगह-जगह बम लगाए

किसी बाज़ार, किसी स्कूल को निशाना बनाया
आम आदमी फिर से इसकी चपेट में आया

ट्विटर, फेसबुक, न्यूज़ चैनल सबने घुमाया
न धड़कने वालों का भी दिल दहलाया

सबने अपने-अपनों की सलामती का पता लगाया
फिर कुछ-कुछ ने बचने की ख़ुशी को पी कर भी मनाया

जिंदा-दिलों ने एक कदम और बढ़ाया
ट्वीट, स्टेटस और ब्लॉग से मदद की कोशिश में हाथ बढ़ाया

अगले दो दिन में सब क्रिकेट में मशगूल थे
और बाकी ऑफिस-ऑफिस में गुल थे

टीवी वालों की याददाश्त पर ताला लग चुका था
हमले की जगह “राखी का बकवान (बकवास बयान)” और “हिना का हैण्डबैग” ले चुका था

जब सब अपनी-अपनी ज़िन्दगी में मस्त हो चुके थे
और किसी आतंकवादी के हाथों मरने का इंतज़ार कर रहे थे
तभी एक बड़ी खबर आई

टीवी वालों को खबर मिल गयी थी
जेब भरने की चाबी मिल गयी थी

खबर थी की ४ आतंकवादी धरे गए हैं
और अदालत में पेश भी हो गए हैं

अदालत ने उन्हें दोषी करार ठहराया है
बिना चश्मदीद गवाह के भी फांसी का फैसला आया है

लोगों में विचार-विमर्श हो रहा है
भैया इस देश को क्या हो रहा है?

अगर इतनी जल्दी फैसले आते गए
तो मेहमान-नवाजी भला कैसे होगी?
मोमबत्तियां कब जलाएँगे?
सहानुभूति जागृत कैसे होगी?

पर सबने एक सबसे बड़ा सवाल उठाया
कि भैया, इतनी जल्दी फैसला कैसे आया?

यह तो भारतीय इतिहास में चमत्कार हुआ है
कि आतंकवादी का फांसी के साथ सत्कार हुआ है

पर किसी के समझ यह बात नहीं आ रही थी
कि यह बदलाव किस महापुरुष की दादी थी

फिर एक शख्स ने सच का खुलासा किया
जिसे सुन सबके मन को दिलासा मिला

कि देश आज भी वैसा ही है
और आतंकवादी ही यहाँ का नेता भी है

यह तो एक “स्पेशल” केस था
जहाँ आतंकवादी भूल कर बैठा था

उसने निशाना तो आम आदमी को बनाया था
पर साथ में एक नेता का गुस्सा भी फ्री में आया था

उस नेता ने ही यह त्वरित कार्यवाही करवाई थी
और साथ ही साथ जनता की भी वाह-वाही पायी थी

उसने एक तीर से दो निशाने लगाए थे
एक ओर आतंकवादी मारे, दूसरी ओर वोट बनाए थे

जो नेता हर हमले पर शान्ति बनाये रखने को कहता था
आज वही आग-बबूला हो आतंकवादियों को मारने की बात कर रहा था

उसके खून में अचानक से उफान आया था
पूरे तन-मन में बदले की आग को भड़काया था

बदले की आग में उसने पूरी शक्ति लगा दी
सबको पैसों से तोल, कार्यवाही तेज़ करवा दी

लोगों ने पूछा, भैया इस हमले आपका भी कोई करीबी मरा था क्या?
तब सच्चाई निकली और वह बोला – “मेरा अज़ीज़ पॉमेरियन कुत्ता शहीद हुआ था”

 

आशा है कि हमें आज़ादी जल्द ही मिलेगी इस भाग-दौड़ से… संकीर्ण सोच से… आलस्य से… नग्नता से… कुंठित खुद से… खुद से..
तब सही मायनों में भारत आज़ाद कहलाएगा..

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14 thoughts on “कुत्ते की मौत

  1. खैर यह दस्तूर तो चलता रहेगा.. जिसे कुछ करना है वो कुछ न कुछ ज़रूर करेगा और जिसे कुछ नहीं करना है, वह तो यमराज सामने आने पर भी कुछ नहीं करेगा (दरअसल तब तो वो सही में कुछ कर ही नहीं सकता.. पर कहने को कह रहा हूँ)
    आशा है कि हमें आज़ादी जल्द ही मिलेगी इस भाग-दौड़ से… संकीर्ण सोच से… आलस्य से… नग्नता से… कुंठित खुद से… खुद से..
    तब सही मायनों में भारत आज़ाद कहलाएगा..
    haan tabhi … warna aapne khud satya ko likha hai puri nishtha se

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  2. जिस देश में देशभक्तों की ऐसी फ़ौज है…वहां आतंकवादी घुस जाए…विश्वास नहीं होता…भ्रष्ट व्यवस्था में बहुत छेद हैं…शुरुआत घर के अन्दर पल-बढ़ रहे गुंडों और और बदमाशों से कीजिये…बाहरी घुसपैठिये बिना अंदरूनी समर्थन के कुछ नहीं कर सकते…

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  3. कमाल की व्यंगात्मक प्रस्तुति है आपकी.
    पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया.
    बहुत अच्छा लगा.
    आपके ब्लॉग को फालो कर रहा हूँ.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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