घर पर माँ, एक छोटा भाई और एक छोटी बहन का पूरा बोझ उसके ऊपर..
प्रथम श्रेणी से पास होने के बावजूद एक मामूली नौकरी मिली थी बड़े शहर में.. कुछ से अपना गुज़ारा चलाता और बाकी घर पर भेजता..
बहन की शादी और छोटे भाई के लिए एक दुकान खोल के देने की अंतर-इच्छा थी पर इस नौकरी के भरोसे संभव नहीं था..
कुछ साल बीते तो सर पर जिम्मेवारी मार करने लगी.. अब थोड़ा तंग-तंग रहने लगा था.. और ना ही उसकी काबिलियत के मुताबिक़ उसे नौकरी मिल रही थी…
शहर के दोस्त सिर्फ शहरी थे, दिली नहीं.. किसी से अपना दुःख नहीं बाँट पाता और दिन-ब-दिन परेशानी से घिरता जा रहा था…
कभी-कभी अखबार पढ़ता तो पता चलता कि फलां दुर्घटना में पीड़ित के परिवार को ५ लाख मिले.. फलां बम धमाके में मृत के परिजनों को ७ लाख मिले..
सोचता, कि कभी उसके साथ भी ऐसा हो जाए तो इतने पैसों से उसकी अंतर-इच्छा शायद पूरी हो जाए.. आत्महत्या के लिए कोई पैसे नहीं मिलते थे पर सरकारी दुर्घटना में ज़िन्दगी को चंद पैसों में तोला जाता था जो कि मनोज के परिवार के लिए बहुत था…
पर उसे क्या खबर थी कि यह सोच एक दिन सच्ची खबर में बदल जाएगी..
घर लौट रहा था और ट्रेन दुर्घटना में ज़िन्दगी ने मौत को गले लगाया और फिर सरकार ने मृत के परिवार को ५-५ लाख रूपए धनराशी देने की घोषणा की…
आज एक मौत ने तीन जिंदगियों को जान दी थी पर क्या यही एक रास्ता था? क्या ज़िन्दगी, मौत की मोहताज हो गयी थी?
शायद मनोज के लिए इसके अलावा कोई विकल्प न था और उसका उत्तर “हाँ” ही होता…
zindagi ki kimat maut ke baad
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मार्मिक..
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जिन्दगी की कीमत … ।
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मार्मिक …. जीवन किसी के मौत का म्ह्ताज़ हो गोया … पर ये पैसा लेने में कितना दर्द हुवा होगा परिवार को …
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भोपाल गैस त्रासदी की यादें ताज़ा हो गयीं…जो मर गये…वो बच गये…बाकि मुआवज़े के लिए भटकते रहे…
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बहुत मार्मिक..
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कभी कभी तो सरकारी घोषणा घोषणा ही रह जाती है। ऐसे में एक जगह चार बेमौत मरते हैं 😦
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बेहद दुखद प्रसंग…..
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मार्मिक ..
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बड़े कष्ट हैं इस दुनियां में …..
प्रभावशाली रचना !
शुभकामनायें !
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बहुत मार्मिक कहानी..
http://www.belovedlife-santosh.blogspot.com
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उफ़…..
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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मर्मस्पर्शी लघुकथा
जिंदगी जीने के लिए पहले मरना !
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maut ka bhi ilaj ho shayad ,
zindgi ka koi ilaj nahi …
chintan ko majboor karti laghu katha
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'shayad uska javab haan hota '
kya kahen aaj jeevan maout se sasta hai aur uski kimat maout se kam
rachana
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Waah..! Bahut hi marmik rachna.. Badhai…
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क्या ज़िन्दगी, मौत की मोहताज हो गयी थी?
मार्मिक ..
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सोच को वेग देती कथा..
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bhule nahi hai kuch bhi..surakh kuch is tarah se aih..us dabi si chingari mein dil rakh kuch is tarah se hai!sashkt lekhan!
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Rashni Ji sahi kahti hain.. Ye humare samaj ki vidambana hai.. Kuchh aur kahne blog par aaya tha.. Kah raha hun Marmik…..
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दुखद प्रसंग.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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jindagi ki keemat….
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बहुत मार्मिक कहानी..
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !
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मर्मस्पर्शी कथा.
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प्रभावशाली प्रस्तुति
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marmsparshi prastuti
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