प्यार में फर्क

दिवाली का दिन था और विशेष अपने कॉलेज से घर छुट्टी पर आया हुआ था..
ठण्ड भी बढ़ रही थी और इसलिए विशेष के पिताजी अपने लिए एक जैकेट ले कर आये थे…
विशेष ने जैकेट देखा तो उसे खूब पसंद आया और वह बोल उठा – “वाह पापा! यह तो बहुत ही अच्छा जैकेट है।”
इतना बोलना था कि पिताजी तुरंत बोले – “अगर तुम्हें पसंद हो तो तुम रख लो, मैं अपने लिए और ले आऊंगा।”

यह किस्सा यहीं समाप्त हो गया और कई साल बीत गए…

विशेष अब नौकरीपेशा और शादीशुदा आदमी हो चुका था.. माता-पिता साथ ही में रहते थे..

एक दिन वह अपने लिए कुछ शर्ट्स ले कर आया और उन्हें सबको दिखा रहा था कि एक शर्ट को देख कर पिताजी बोल उठे – “वाह! यह शर्ट तो बेहद स्मार्ट लग रहा है।”
और विशेष तुरंत बोल उठा – “पापा, अगर आपको यह पसंद है तो मैं आपके लिए ऐसा ही एक और शर्ट ले आऊंगा जल्द।”

रात को अपने आराम-कुर्सी पर बैठे पिताजी को वो दिवाली वाली बात याद आ गयी और उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि जो प्यार माँ-बाप अपने बच्चों को देते हैं, वैसा ही प्यार बहुत ही कम बच्चे अपने माँ-बाप को लौटा पाते हैं.. प्यार में फर्क हो ही जाता है…

पर वह खुश थे कि इस ज़माने में भी उनका बेटा उन्हें कम से कम मना तो नहीं कर रहा है और इसी खुशी में वो नींद की आगोश में खो गए…

29 thoughts on “प्यार में फर्क

  1. सुन्दर प्रस्तुति.

    नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,प्रतीक जी.

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  2. छोटे से उदहारण से आपने बहुत कुछ कह दिया शाद यही फेर्क है जो भिन्नता दर्शाता है की माता-पिता ,माता-पिता ही होते हैं जो सिर्फ देना जानते हैं सार्थक प्रस्तुति

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  3. बस यही तो फ़र्क होता है बच्चो और माता पिता के निस्वार्थ प्रेम मे…………बेहद गहन मगर सटीक्।

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  4. संतोष त्रिवेदी जी यह भी कह रहे हैं:
    “संवेदनशील कहानी का उदहारण है .यह प्यार नहीं हमारे समाज में रिश्तों में हो रहे अवमूल्यन की गवाही है !”

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  5. प्रतीक,फोटो से तो लगता है की मैं आपको नाम से सम्बोधित कर सकती हूँ, सो कर रही हूँ.माता पिता के बच्चों प्रति प्रेम व बच्चों के माता पिता प्रति प्रेम की तुलना करना ही गलत है.माता पिता का ममत्व व वात्सल्य प्रकृति द्वारा दिया गया है ताकि नया जीवन जन्म ले व सुरक्षित रह स्वयं नए जीवन के निर्माण लायक बन सके.इसमें किसी त्याग या महानता की बात बिल्कुल नहीं है.शायद ऑक्सीटोसिन नामक हॉर्मोन को प्रकृति ने बच्चे के जन्म के साथ ही माँ को यूँ ही नहीं बाँटा.
    बच्चों में माता पिता प्रति यही भाव प्रकृति ने इसलिए नहीं डाले ताकि वे परिवार की एक नई इकाई बनाकर स्वयं नवजीवन का निर्माण कर सकें. इसके लिए आवश्यक है कि वे पुराने बन्धनों को थोड़ा ठीला कर अपना नया संसार बसाएँ,नए मोह व ममता में डूब सकें. इसको यदि स्वार्थ कहें तो गलत है. वे माता पिता के लिए जितना करते हैं वह प्रकृति द्वारा संचालित न होकर समाज में रहकर सीखा हुआ होता है. वे जितना कर रहे हैं वह बहुत है.
    घुघूतीबासूती

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  6. आपकी यह पोस्ट बहूत अच्छी लगी इस छोटी सी कहानी के माध्यम
    से बहूत गहन विचारो को बताया है , बदलती पिढी के साथ प्यार में
    भी फर्क आ हि जाता है ..

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  7. घुघूती जी,
    मैंने यहाँ पर प्यार की तुलना नहीं की है.. मैंने तो बस इस बात को छेड़ने की कोशिश की है कि धीरे-धीरे पीढ़ियों में नकारात्मक बदलाव आ रहा है..
    आज बच्चों के लिए “मैं” बड़ा हो गया है ना कि उनके “माता-पिता” .. इस बात को मैंने दोनों के प्यार में फर्क बताकर दर्शाया है..
    उन दोनों के प्यार की तुलना नहीं की जा सकती, इसमें कोई दो राय नहीं है..

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  8. समय की बदलाव के अनेक कारण हैं … आज की आपाधापी वाली जिंदगी … बदलते नियम, समाज … पर जैसा की आपने ने अंत में कहा वो फिर भी खुश थे … कमसे कम उनका बेटा सोचता तो है …
    अच्छी कहानी …

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  9. प्रतीक जी, पिता पुत्र में संवाद होना ही चाहिए,ताकि एक दुसरे के विचारों से को समझ सके,
    पोस्ट पर आने के लिए आभार,इसी तरह स्नेह बनाए रखे
    मै फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,…

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  10. बहुत सार्थक बात आपने लिखी प्रतीक…
    मैं इसको प्यार में कमी नहीं कहूँगी…ये व्यक्तिगत स्वभाव का अंतर हो सकता है…
    मैंने ऐसे पिता भी देखे हैं जो ७० वर्ष की आयु में भी अपनी चीज़ २० साल के पोतों को नहीं दे पातें…
    प्यार सालों से वैसा ही है..किसी के दिल में है..किसी के नहीं…
    🙂
    लिखते रहिये.
    शुभकामनाये…

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  11. सही कहा
    बच्चे उतना लौटा नहीं पाते
    माँ बाप का प्यार ही ऐसा होता है

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  12. मात पिता अक्सर बच्चों के लिए अपनी इच्छाओं की देते हैं । यह उनके प्रेम वश ही होता है । लेकिन बच्चों में मात पिता के लिए यही भावना बनी रहे तो वे मात पिता भाग्यशाली होते हैं ।

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