तो हमारी एक दोस्त से बहस छिड़ गयी कि हिन्दी लिखने वालों को सरल लिखना चाहिए या हिन्दी की गुणवत्ता बरकरार रखते हुए क्लिष्ट?
उसे मेरी बहुत ही सरल और सुस्पष्ट हिन्दी लिखने पर आपत्ति थी।
मैंने कहा कि, “देखो, मैं कोई भी लेख, लोगों के लिए लिखता हूँ। अगर लेख की कठिनता के कारण लोग कुछ समझ ही न पाएँ तो फिर मेरे लिखने का क्या फायदा?”
उसने कहा, “अगर यही सोचकर सब लिखने लगें तो हिन्दी के समृद्ध इतिहास को कौन बरकरार रखेगा?”
मैंने कहा, “अगर बरकरार रखने के चक्कर में हिन्दी पढ़ने वाले ही गायब हो जाएँ तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? मेरा कहना बस इतना है कि जहाँ आज दुनिया में हिन्दी से कतराते लोगों की संख्या महंगाई के साथ हाथ में हाथ मिलाकर बढ़ रही है, वहाँ ज़रूरत ऐसी हिन्दी की भी है जो लोगों को तुरंत समझ में आये। जहाँ लोगों के पास अपने कमाए हुए रुपयों को व्यय करने का वक़्त नहीं है वहाँ क्लिष्ट हिन्दी समझ कर पढ़ने का समय कहाँ बचता है? अगर हिन्दी में रूचि ही ख़त्म हो जाए तो वो सारे जवाहराती हिन्दी लेखों को स्थान कूड़े में होगा जिसके जिम्मेवार हिन्दी कट्टरवादी होंगे। तुम जैसे लोग हिन्दी के स्तर को बरकरार रख सकते हैं और हम जैसे नौसिखिये उन लोगों का रुझान फिर से हिन्दी की तरफ कर सकते हैं जिन्हें हिन्दी से उदासीनता हो गयी है। हाथ से हाथ मिलाकर चलेंगे तो हिन्दी का उद्धार तय है नहीं तो कट्टरपंथियों ने दुनिया का भला नहीं किया है।”
बात उसके समझ में आई या नहीं, नहीं पता। पर आपके क्या विचार हैं “सरल या क्लिष्ट हिन्दी” पर। ज़रूर रखें। जय राम जी की!
मेरा मानना यह है कि आज के दौर मे जहां हिन्दी पढ़ने वाले ही बहुत कम होते जा रहे है हिन्दी को क्लिष्ट बना आम लोगो से उसको और दूर करने के सिवाए और कुछ नहीं होगा |
आप लिखे खूब लिखे और ऐसे लिखे जो आपको आपके पाठक से जोड़ सके … सब से जरूरी बात यह है … अगर सरल हिन्दी मे आप अपनी बात बखूबी कहते है तो सरल हिन्दी मे लिखें और अगर आप क्लिष्ट हिन्दी मे महारत रखते है तो क्लिष्ट हिन्दी मे लिखे … पर हिन्दी मे लिखे जरूर ! आज हिन्दी को लेखक और पाठक दोनों की जरूरत है !
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आज हिन्दी को लेखक और पाठक दोनों की जरूरत है,….
बहुत बढ़िया आलेख ,बेहतरीन पोस्ट,….
प्रतीक जी,आप तो पोस्ट पर आते ही नही,आपका फालोवर बनने का क्या अर्थ,
MY RECENT POST…काव्यान्जलि …: मै तेरा घर बसाने आई हूँ…
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जरूरी है…विचारों का व्यक्त होना…पाठक अपनी पसंद से लेखक चुन लेगा…साहित्यिक हिंदी वाला साहित्य खोजेगा…और मौज के लिए पढ़ने वाला…कुछ भी पढ़ लेगा…आपका सरोकार पसंद आया…
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जो भी हो, वह प्रवाहमय हो, दोनों ही तरह से लिखी जाती है।
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इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? – ब्लॉग बुलेटिन
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मुझे लगता है सरल भाषा का प्रयोग ही ज्यादा उचित है …
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दोनों की जरूरत है….अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई….
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donon hi chahiye……donon ke pathak hain.
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saral hindi sabse behtar.. jo ham kahen log samjh jayen… bas:)
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सरल हिंदी ही सबसे अच्छी है ,,लोगो को जल्दी समझ भी आ जाती है,,
जिससे उनका रुझान हिंदी की तरफ बरकरार रहता है….कठिन हिंदी भी साथ -साथ रहे….तो कोई हर्ज नहीं…
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