उम्मीदें

काश ये ऐसा हो जाता, काश वो ऐसा हो जाये। पर ये, वो क्यों नहीं? पर वो, ये क्यों नहीं?

सबके मन में एक तूफ़ान फड़कता रहता है कि जो वो चाहे वैसा हो। “उम्मीद” एक इतना सशक्त और दृढ़ शब्द है जिसके दम पर ये दुनिया टिकी हुई है। उठते ही दिन के अच्छे होने की उम्मीद के साथ और रात को अच्छी नींद की उम्मीद के साथ, हमारा समस्त जीवन इसी के इर्द-गिर्द घूमता रहता है।

बचपन से माँ-बाप की निगाहें बच्चों पर टिक जाती हैं कि मेरा बच्चा बड़ा हो कर नाम रोशन करेगा, मेरी बच्ची अपने काम में बाकी सब से आगे निकलेगी। क्लास में थोड़ा अच्छा करो तो शिक्षक की उम्मीदें बढ़ जाती हैं और फ़िर पूरा समाज आप पर नजरें गड़ाए देखता रहता है कि ये इंसान ज़रूर उसका नाम रोशन करेगा।

उम्मीद! उम्मीद! उम्मीद!
कभी कभी तो इंसान इसी उम्मीद से इतना घबरा और टूट सा जाता है कि वह खुद ये उम्मीद करने लगता है कि इन उम्मीदों से उसका पीछा छूट जाये, पर ऐसा हो नहीं पाता है। वह इसी ख्वाहिशों के अथाह समंदर में तड़पता हुआ सा हाथ-पैर मारता रहता है पर किनारा कभी नहीं मिल पाता। वह तो उसकी आखिरी सांस पर ही उसे किनारा दिखता है।

वैसे तो यह उम्मीद है बेहतरीन चीज़। इसके बिना दुनिया का कोई काम नहीं हो सकता। अगर मैं इस उम्मीद के साथ डॉक्टर के पास न जाऊं कि वो मुझे ठीक कर देगा, तो मैं कभी ठीक नहीं हो पाऊंगा। अगर मैं कारोबार में मुनाफे की उम्मीद कभी न करूँ तो उसका ठप्प होना तय है। अगर आज रात मैं कल सुबह उठने की उम्मीद के साथ न सोऊं तो मेरी मृत्यु निश्चित!

उम्मीद, विश्वास, ख्वाहिश! यह सब दुनिया के ऐसे सच हैं जो तालमेल में रहे तो जीवन को आनंदमय बनाते हैं पर वही अगर सीमाओं को तोड़ कर निकलने की कोशिश करें तो जिन्दगी में बाढ़ का ऐसा जलजला पैदा कर सकते हैं जो खुद कि ही नहीं वरन् आस पास की जिंदगियां भी बर्बाद करने की काबिलियत रखता है।

पर बढ़ती उम्मीदों का सही समय पर टूट जाने से इंसान को भावी जिन्दगी में बहुत सुकून रहता है। ऐसे लोगों को धन्यवाद देना चाहिए जो आपको ये एहसास दिलाते हैं किआप कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहे थे जो कि गलत था। पर इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि आप ऐसे व्यक्तियों को अपने आस पास न फटकने दें जो आपकी छोटी छोटी ख्वाहिशों को समझने में भी नाकाम हैं। ऐसे लोगों से दुनिया टूट जाएगी। अगर दम है तो सामने बोल दें, नहीं तो हमेशा की छुट्टी। पर अगर किनारा न लिया तो आपके उम्मीदों का बाँध फ़िर से भरेगा और एक कणिय उम्मीद से टूट कर आपको बहा ले जाएगा।

उम्मीद तो हम सबको है कि हम अच्छा खाएं, अच्छा पियें, अच्छे मकान में रहे, बढ़िया गाड़ी में घूमें, अच्छी सरकार चुनें, अच्छे लोगों के समक्ष रहें और न जाने क्या क्या। पर अगर यह सबख्वाहिशें पूरी हो गयीं तो उम्मीद का खात्मा हो जाएगा और अगर उम्मीद चीर-निद्रा में सो गयी, तो हर रूह से आत्मा का पलायन निश्चित है।

आज के भौतिकवाद जहां में उम्मीदों का मेला लगा रहता है। प्रचारक कंपनियां लोगों की उम्मीदें बुन रही हैं। लोगों की सोच धूमिल हो चुकी है या फ़िर बिलकुल नदारद।ये उम्मीदों का गुबार इतना महीन है कि एक तिनके की चोट से आपके जीवन की लीला समाप्त कर सकता है। अगर यह भौतिकवाद आपको लील गया तो आपकी आने वाली पीढ़ी शायद आ ही न पाए या फ़िर आए तो आपको जन्मांतर तक कोसे। अपनी उम्मीदों का घड़ा हमेशा कुछ खाली रखें। अगर वह उबल उबल कर गिर रहा है सँभलने का ज्यादा वक्त नहीं है।

ख्वाहिशें होना बुरी बात नहीं है, उसमें सामंजस्य होना ज़रूरी है। पश्चिम को देखकर युवा बहक रहे हैं और युवा तो क्या, एक दशक पुरानी पीढ़ी भी इसके लपेटे में है। आज जाग गए तो भाग जाग उठेंगे नहीं तो रूहें काँप उठेंगे। उम्मीद की उम्मीद भी सीमाओं के भीतर रख कर हम एक बेहतर जीवन की कामना कर सकते हैं।

इसी उम्मीद के साथ कि आगे से थोड़ा और नियमित और बेहतर लिखूंगा आपको आपकी उम्मीदों के पूरी होने की कामना के साथ छोड़े जा रहा हूँ।

*उम्मीद है कि आपके कमेंट्स जोरो-शोरों से आएँगे 🙂

8 thoughts on “उम्मीदें

  1. इसी उम्मीद से तो लोग जीते है ,,,
    प्रतीक जी,कमेंट्स पाने के लिए अच्छा लिखने के ,साथ साथ दूसरों के पोस्ट पर जाकर कमेंट्स करना जरूरी भी जरूरी होता है ,,,

    होली की हार्दिक शुभकामनायें!
    Recent post: रंगों के दोहे ,

    Like

  2. हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले…पर सामंजस्य आवश्यक है…

    Like

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s