कुत्तों की गोष्ठी हो रही थी और आस पास वाले मोहल्लों से भी सहभागी इस गोष्ठी में शामिल हुए थे। गोष्ठी का कोई खास उद्देश्य तो नहीं था। बस अपनी-उसकी सफलताओं का अंधबखान, तालियाँ, भौंकालिया, इत्यादी। गोष्ठी एक छप्पर के नीचे जमी हुई है जो कुछ साल पहले किसी भिखारी की हुआ करती थी। इसमें बस एक छप्पर है और कुछ नहीं। थोड़ी बहुत रौशनी सड़क पे लगे लैम्प से आती है और वो तब जब उसमें खुद विद्युत घुसे।
अब चूँकि ये गली के कुत्ते हैं तो इनके कारनामे भी वही छोटे-मोटे नेताओं जैसे। जैसे लोकल नेता अपने चार-पांच चमचों को ले कर गुंडागर्दी करके अपने आपको तीसमारखां समझते हैं, ठीक वैसे ही ये गली के कुत्ते भौंकाली झाड़ रहे हैं।
एक कहता है, “कुत्ते भाईयों, अभी ४ दिन पहले की ही बात है, एक मरियल मोबाइल पर खिसियाता हुआ जा रहा था। इधर मैंने बंटी और चंटी को इशारा किया तो दोनों भी सतर्क हो कर इसके पीछे हो लिए। आगे वाले कचरा डब्बे के बाजू में जो नाला है ना, ठीक उसी के पास पहुँचते ही हमने यात्री को भौंका कर चौंका दिया। बेचारे का मोबाइल छपाक से नाले में। बाऊहाहाहा, हम कुत्तों की तो घिग्घी बंध गयी। बिन मोबाइल के बकरे की हालत देखने की थी।
इतने में चौथा कुत्ता भौंकलाया और बोला, “वाह कुत्ते भाई, उसके बाद की कहानी भी तो बताओ। जो उसने तीन पत्थर उठा कर तुम तीनों पर बरसाए थे तो कैसे मिमियाते हुए भागे थे उलटे चारों पैर? कम्मकल तुम्हारे कारण मुझे भी वहाँ से कटना पड़ा था। अच्छा भला मैं बासी ब्रेड-मक्खन खा रहा था। वो करमजली मेमसाहब ने ऊपर से फेंका था। मैंने देखा, बिल्ली ले गयी ब्रेड मेरे निकलते ही”
पहला कुत्ता थोड़ा हड़बड़ाता हुआ बोला, “अब यार थोड़ा रिक्स तो उठाना पड़ता है ना। कभी-कभी कुछ तूफानी करते हैं और उसमें भी तुमको नुक्स दिख रहा है। हः!”
इतने में दूसरे मोहल्ले से आये २-३ कुत्ते अपनी कथा बघारने लगे। बोले “अमा तुम तो बस नालों में ही ऐश करो। हम ३ ने तो कल एक ऑटो वाले को जो दौड़ाया है, बेचारा ऑटो को ट्रक की तरह उड़ा ले गया। वो तो हमने अगले कट पर उसको छोड़ दिया। कुत्ता-बॉर्डर आ गया था ना, नहीं तो उसके ऑटो को पलटा कर ही छोड़ते। अरे हमने इतने साइकिल, ऑटो, अल्टो, नैनो, बाईक्स को पछाड़ा है कि तुम्हारी बिसात ही क्या। तुम कुत्ते गन्दी नाली के टुच्चे आदमी….”
‘आदमी’ बोलना था कि दोनों गुटों में घमासान छिड़ गया। कुत्ता वार हो गया और पूरा मोहल्ला हिल गया। तभी एक दरबान ये लंबा डंडा ले कर आया तो दोनों ओर के कुत्ते पिलपिलाते हुए भगे और अपने-अपने बिलों में घुस गए।
कुछ दिनों बाद एक और कुत्ता गोष्ठी हुई पर इस बार रईस इलाके के कुत्तों की। वहाँ की तो शान भी देखते बनती थी। चारों ओर हड्डियाँ अलग-अलग आकारों में सजी हुई, इलाके के सामुदायिक केन्द्र की मखमली घास पर हलकी-हलकी रौशनी आते हुए, कुत्ते विदेशी मार्का वाले पट्टे पहने हुए, कुछ तो ऊनी मफलर ओढ़े हुए, लगता था मानों रईसों की ही कोई मीटिंग हो। कोई ज़्यादा भौंकना-गुर्राना नहीं, तहजीबों की महफ़िल थी।
इसको कुत्तों की किटी पार्टी कह सकते हैं। ये भी हफ्ते में एक बार मिलते हैं। अपनी रईसी दिखाते हैं और अपनी-अपनी महंगी कारों में बैठ कर चले जाते हैं।
एक जनाब-ए-कुत्ते ने फरमाया, “हे गाईज़, आप लोग को पता है कल मैंने कौन सी गाड़ी को खदेड़ा?” सब भौंकचक्के से उसको देखते हैं और वो अपनी भारी गुर्राहट में कहता है “मर्सिडीज़ बेंज़” और सबकी आवाज़ स्तब्धता के कारण ‘कुकुरी गुर्राहट‘ से ‘मानवी आह‘ में बदल जाती। उस कुत्ते के लिए सबके मन में एक इज्ज़त पैदा हो जाती है।
पर तभी दूसरे कोने में खड़े कुत्ते ने अपना जबड़ा खोला और भौंका, “इसमें क्या शाही बात है? मैंने तो कल ही एक लैम्बौरग के आगे वाले पहिये पर अपनी छपाक छाप छोड़ी” अब सारी आह मुड़कर इस नये महाशय पर आ टिकती है।
इसी तरह ये कुकुरी-किट्टी बड़े ही अदब और शालीनता से चलती रहती है। यहाँ पर बातें केवल गद्देदार गिद्दों की, आरामदायक गाड़ियों की, ममतामयी मालकिनों की और लज़्ज़तदार खाने की होती है।
सब एक से बढ़कर एक रईसकुत्ज़ादे हैं और इनकी दुनिया हमारे गली के बाहर नाले किनारे कचरों में धँसे कुत्तों से बिलकुल भिन्न है। इन्हें उस दुनिया के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं है और ना ही उन्हें इनकी दुनिया के बारे में। कुत्तों की जिन्दगी में अभी टीवी और फेसबुक जो नहीं आया है…
जाते जाते मेरी आवाज़ में एक गीत भी सुनते जाइए: कौन मेरा (स्पेशल २६)
वाह, मन में भरे समान भाव..
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मस्त लिखा है.…… मजा आ गया
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मज़ा आगया सच में।
भाई काहे नहीं मुंबई जा कर किस्मत आजमाते ?
आवाज़ इतनी ज़बरदस्त है आपकी तारीफ को शब्द कम हैं बॉस !
मेरी कामना है जल्दी ही किसी फिल्म मे आपको ब्रेक मिले। आमीन!
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यशवंत जी,
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद. फिलहाल तो इसी कोशिश में हैं.
दुआ रही तो यह कामना भी ज़रूर मुकम्मल होगी 🙂
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कल 05/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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मस्त….
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फिलम में मुझे भी चिलम पीनी है:)
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हर गोष्ठी का अंजाम कुछ ऐसा ही लगता है…गीत सुन के आनंद आ गया…म्यूजिक कौन कंपोज़ करता है…
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म्युज़िक के लिए वोकल्स मैंने खुद हटा दिए और फ़िर उसपे गाना गा कर मिक्सिंग कर दिया..
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ये है इंजिनियर साहब की कलाकारी…बधाइयाँ…
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bahut shandar kahani
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इन्हें उस दुनिया के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं है और ना ही उन्हें इनकी दुनिया के बारे में। कुत्तों की जिन्दगी में अभी टीवी और फेसबुक जो नहीं आया है..
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रियली? आपने शायद ध्यान से नहीं देखा। ट्विटर/फेसबुक पर सब जातियां, प्रजातियां पायी जाती हैं! 🙂
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