सुबह-शाम, दोपहर-रात, घर-ऑफिस, बस-ट्रेन, मालिक-नौकर, आदमी-जानवर, इत्यादि सभी मौकों और परिस्थितियों को हम आहतों के अनुकूल बना रहे हैं जो कि एक प्रशंसनीय कदम है। एक दोस्तनी को २ दिन तक मेसेज का जवाब नहीं दिया तो तीसरे दिन बुरा लगने का मेसेज आ गया और लिखा था कि वो २ दिन तक कुढ़ती रही थी और वो मुझसे बहुत आहत है क्योंकि मैंने उसके “कैसे हो?” का जवाब नहीं दिया था। मैंने उसे जवाब में लिखा, “मुझे तो तुम्हारा मेसेज ही नहीं मिला और तुम यूँ ही आहत हो ली? फ़ोकट में आहत हो कर कैसा लग रहा है? वैसे भी आजकल चलन में है। 😀” उसका जवाब तो अभी तक नहीं आया है। शायद कुछ दिन और कुढ़ेगी। कुढने दीजिये, अच्छा है समाज के लिए। इसी सिलसिले में ४-५ और लोगों को आहत करेगी और ये कड़ी को बढ़ाने में मदद करेगी।
और ये देखिये, बुरा मानने वाला तो सबसे बड़ा त्यौहार भी आ रहा है। मैं तो कह रहा हूँ कि होली की टैगलाइन को बदल कर “बुरा तो मानो होली है!” कर देना चाहिए क्योंकि बुरा मानने वालों की जमात अभी बहुमत में है। इससे सुनहरा मौका नहीं मिलेगा इस आहती सोच को बढ़ाने में। मार्केटिंग के ज़माने में टाइमिंग भी आखिर कोई चीज़ होती है। होली के दिन अगर कोई घर पर आ कर बाहर निकलने को कहे तो साफ़ कह दें कि इस बार वो होली नहीं खेलेंगे क्योंकि वो सरकार से आहत हैं कि उसने अपने वायदे पूरे नहीं किये या फिर कह दें कि इंद्र देव ने बिन मौसम “बरसो रे मेघा” कर दिया इसलिए वो नाक-भौं सिकोड़े बैठे हैं या फिर कह दें कि ओबामा ने भारत के खिलाफ जो बयान दिया है वो उनके गले नहीं उतरी है इसलिए इस साल वो अपने गले से भांग भी नहीं उतरने देंगे। कहने का मतलब है कि टुच्ची से टुच्ची बात के लिए भी अब हमको बुरा मान लेने की आदत डालनी पड़ेगी।
कोई कुछ ट्वीटता है तो ५० लोग हंगामा कर बैठते हैं, उन ५० लोगों के खिलाफ फिर १०० लोग हल्ला बोल देते हैं और फिर उन १०० के खिलाफ… आप समझ रहे हैं ना? बस यही जो कड़ी-दर-कड़ी, ट्वीट-दर-ट्वीट, पोस्ट-दर-पोस्ट, बयान-दर-बयान बुरा मानने का सिलसिला चल रहा है इसे हमें तब तक ख़त्म नहीं होने देना है जब तक हम ना ख़त्म हो लें। वैसे भी आजकल दिन भर का रोना हो गया है कि ज़िन्दगी बेकार हो गई है, नौकरी बेजान सी है, कोई आपको प्यार नहीं करता, आप ४ घंटे ट्रैफिक में बिताते हैं और भी न जाने क्या क्या। इसलिए इसका सबसे बढ़िया उपाय इन सबसे ऊपर उठने की बजाय आहत हो हो कर मर जाना अच्छा है। नहीं? अरे, अरे, आप तो बुरा मान गए। खैर मंशा तो मेरी यही ही थी।
देखिये अब मैं तो कहता हूँ कि आप ये पोस्ट पढ़ कर जबरदस्त ढंग से बुरा मान जाएँ कि इस पोस्ट से तो समाज में नकारात्मकता फैल रही है और इस पोस्ट को पढ़ कर कितनों की ज़िन्दगी तबाह हो जाएगी। और हाँ इस बुरा मानने के सिलसिले में ब्लॉग का लिंक भी फैला दीजियेगा। क्या है ना कि मार्केटिंग का ज़माना है और हमें फ़ोकट की मार्केटिंग बहुत पसंद है ठीक उन्हीं की तरह जो बे सिर-पैर की बयानबाजी से आपको आहत किये जा रहे हैं और आप उनकी फ्री फ़ोकट मार्केटिंग। अरे रे ये तो राज़ की बात खुल गई। वैसे कोई बात नहीं, आप तो हमारे मित्र हैं। मैं बुरा नहीं मानूँगा।
नोट: अभी अभी हमारी दोस्तनी का जवाब आ गया है। कह रही है कि उसने मुझे सोशल मीडिया पे हर जगह ब्लॉक कर दिया है। मुझे तो वैसे भी धेला फर्क नहीं पड़ रहा था। चलिए मगझमारी कम हुई एक 🙂
आपको होली की शुभकामनाएँ। खूब होली खेलिए-खिलाइए और लोगों को बुरा मनवाइये और ज़ोर से बोलिए, “बुरा तो मानो…”
हम तो बहुतै बुरा मान गए….. इस पोस्ट के पढ़ने के चक्कर में टूथपेस्ट के बजाय शेविंग जेल भर लिए मुँह मा….. मर नासपीटे 😀
बहुत मस्त हास्य व्यंग्य…. इसे मुझे मेल कर दो.
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बुरा मानते हुए आपको होली ढेर सारी शुभकामनाएँ।
और साथ ही बहुत बुरा मानते हुए हम इस पोस्ट का लिंक लगा रहे हैं कल 06 /मार्च/2015 http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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sundar rachna ke liye hardik badhayee Pratik ji
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आदत हो जाती है तो फिर काहे का बुरा …
रंग पर्व की मंगलकामनाएं!..
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बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
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सही कहे हो भैया। अच्छे से झाड़े हो।
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बहुत सुंदर.
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अभिनव रचना के लिए बहुत बधाई भैया।
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