यात्रा – एक संगीतमय कहानी

Yatra - A Musical Story | यात्रा - एक संगीतमय कहानी

पिछले वर्ष एक लाइव कार्यक्रम किया था जहाँ स्वयं और एक दोस्त ने मिलकर एक कहानी बुनी थी और कहानी के अनुकूल गीतों को चुनकर, इस पूरे संगीतमय कहानी को प्रस्तुत किया था। पूरा कार्यक्रम १ घंटे का ही था और मौजूद लोगों को यह नवाचार पसंद भी आया।


वैसे तो अब पूरा कार्यक्रम यूट्यूब पर है और आप यहाँ विडियोज़ देख सकते हैं जिसे ८ अध्यायों में बाँटा गया है।



अगर आप एक के बाद एक केवल ऑडियो सुनना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक्स से सुन सकते हैं। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

अध्याय १ – व्याकुल
ईशान के जीवन की एक और सुबह। एक आम बारिशकार्यदिवस जो कि अचानक ही भावनाओं के अलग ही बाढ़ के साथ उसे विचलित करने वाला है और इस विचलितता के कारण वो स्वयं के अन्दर झाँकने लगता है।

अध्याय २ – आरम्भ
ईशान वापिस घर आ गया है। अब उसका आकस्मिक अगला कदम क्या होगा? क्या ये कदम उसे सही राह पर ले जाएगा? यात्राएँ आजकल कोई ख़ास चीज़ नहीं रही हैं, लेकिन अपने आराम के दायरे से बाहर निकलना सबके लिए दुष्कर ही होता है।

अध्याय ३ – ध्यान
जीवन का सर्वोत्तम, सरलतम में ही पाया जाता है। मन को बहने देना, यही एक कृत्य मनुष्य को इस तामझाम से मुक्त करने में बहुत कारगर है। ईशान उदयपुर की एक झील के पास टहलता हुआ एक अविरल, सदाबहार गीत गुनगुनाता है।

अध्याय ४ – दर्शन
आधुनिक रिश्तों को ‘सरलता में जटिलता’ के मापदंड पर तोला जा सकता है। ऊँची इमारतों में घिरे हुए हम असहाय महसूस करते हैं और फिर इससे स्वतन्त्र होने के उपाय ढूंढते हैं। ईशान एक सरल, नम्र व्यक्ति से मिलता है जो हमेशा आनंदित और जोश-भरी बातें करता है।

अध्याय ५ – मनन
आँख उठाकर ऊपर देखो तो ईश्वर की बनी करोड़ों कृतियाँ दिखती हैं, जो जैसे आपको देखकर कह रही हों कि अपने प्रश्नों का उत्तर स्वयं के अन्दर ढूँढो। ईशान रात्रि के सन्नाटे और ऊपर पसरे आकाश में खो कर सोचने लगता है।

अध्याय ६ – यात्रा
हमें लगता है जीवन हमारे नियंत्रण में है। लेकिन जीवन तो बह रही है और हम बस उसमें तैरने भर का प्रयास कर रहे हैं। एक ऐसी दुर्घटना घटती है जो ईशान के पैरों तले ज़मीन हटा देता है और ऐसी परिस्थिति में डाल देता है जिसकी उसने कभी अपेक्षा नहीं की थी।

अध्याय ७ – निर्वाण
अपना परिवार, अपने दोस्त, काम और हर वो छोटी चीज़ जो हमें रोज़मर्रा में आम लगती हैं, दरअसल वही चीज़ों से हम बनते हैं और उनकी महत्ता अन्य किसी भी चीज़ से अधिक होती है। ईशान को ये बात अब खुलकर समझ में आती है और वो नए जोश के साथ अपनी कर्मभूमि में लौट आता है।

अध्याय ८ – कर्मभूमि
फिर वही रास्ता, बारिश और एक जगा हुआ ईशान। नए चुनौतियों और संघर्ष के लिए अब तैयार है।

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