एक संस्मरण जहाँ हिंदी ने एक प्रेम कहानी गढ़ी है।
हिंदी वाली प्रेम कहानी

एक संस्मरण जहाँ हिंदी ने एक प्रेम कहानी गढ़ी है।
जब अंतरजाल का खोला डब्बारह गया मैं हक्का-बक्का किसी को होड़ थी नाचने कीकिसी की दौड़ थी हँसाने की राजनीति पर था किसी का शिकंजाकिसी का खेलों पर था पंजा चित्रकारी किसी ने कुशल दिखाईनकल में अकल दूजे ने लगाई मेला-रेला-खेला देखाविदूषक होने की न सीमा रेखा झट जो मन में बातें आतीराय बनाकर परोसी … Continue reading राय का रायता
एक सुबह मन में निश्चय कर के उठा कि सच तो क्या, उसकी नानी भी ढूँढूँगा। पता नहीं खुद से भी झूठ बोल रहा था या सच में ऐसा सोच लिया था। पर जो भी था, मन में ठान तो लिया था। नहा-धोकर, खा-पीकर एक सरकारी कार्यालय में घुसा तो देखा कि चपरासी झूठ की … Continue reading झूठ की धुलाई वाला सच
मुंबई शहर पर एक बाहरी व्यक्ति की सोच, एक कविता के रूप में..
"अरे भूकंप आया, भूकंप आया, भागो भागो, जान बचाओ" बस इतना सुनना था कि कमरे में बैठे दसों लोग हाथ उठाकर भागे पर जैसे ही आँगन में आये तो समझ आया कि बगल वाले अवैध घर को गिराने के लिए क्रेन कार्य पर लगा हुआ है और यही कारण है कि थोड़ा इनका घर भी … Continue reading बवाली लोग
हिन्दी की गिरती गुणवत्ता पर कुछ निजी विचार (उदाहरणों के साथ)
हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर सरकार ने जो बड़े-बड़े परदे छपवाए थे, उनमें भी अंक सारे अंग्रेजी में ही थे। कैसी विडम्बना है कि हिन्दी दिवस मनाते वक़्त भी वो अंग्रेजी अंकों (और शब्दों) का प्रयोग कर रहे थे।
समाज में बढ़ते दिवसों के चलन पर आधारित यह व्यंग्य उन बिन्दुओं को छूता है जो अनजाने में हमारा हिस्सा बन रहे हैं पर असल में उनका हमारे जीवन पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं है।
अभी-अभी रेडियो सुन रहा था तो ये विचार उठा कि ये जो विज्ञापन हैं, उनमें से ९०% कोई न कोई सेल के बारे में ही है। कोई आपको ५०% की छूट दे रहा है, तो कोई आपको एक-पे-दस मुफ्त दे रहा है, तो कोई आपको मुफ्त की हवा भी बेच रहा है। कहने का अर्थ … Continue reading ये सेलतंत्र है!
हमारे खड़े रहने की आदत पर कुछ विचार..