राय का रायता

जब अंतरजाल का खोला डब्बारह गया मैं हक्का-बक्का किसी को होड़ थी नाचने कीकिसी की दौड़ थी हँसाने की राजनीति पर था किसी का शिकंजाकिसी का खेलों पर था पंजा चित्रकारी किसी ने कुशल दिखाईनकल में अकल दूजे ने लगाई मेला-रेला-खेला देखाविदूषक होने की न सीमा रेखा झट जो मन में बातें आतीराय बनाकर परोसी … Continue reading राय का रायता

झूठ की धुलाई वाला सच

एक सुबह मन में निश्चय कर के उठा कि सच तो क्या, उसकी नानी भी ढूँढूँगा। पता नहीं खुद से भी झूठ बोल रहा था या सच में ऐसा सोच लिया था। पर जो भी था, मन में ठान तो लिया था। नहा-धोकर, खा-पीकर एक सरकारी कार्यालय में घुसा तो देखा कि चपरासी झूठ की … Continue reading झूठ की धुलाई वाला सच

ये शहर.. कैसा है ये शहर?

Mumbai Local Rush

मुंबई शहर पर एक बाहरी व्यक्ति की सोच, एक कविता के रूप में..

बवाली लोग

"अरे भूकंप आया, भूकंप आया, भागो भागो, जान बचाओ" बस इतना सुनना था कि कमरे में बैठे दसों लोग हाथ उठाकर भागे पर जैसे ही आँगन में आये तो समझ आया कि बगल वाले अवैध घर को गिराने के लिए क्रेन कार्य पर लगा हुआ है और यही कारण है कि थोड़ा इनका घर भी … Continue reading बवाली लोग