अंतरजाल का जाल

अंतरजाल, आज थोड़े से भी पढ़े लिखे लोगों के लिए उनके जीवन का अभिन्न अंग हो गया है और पढ़े-लिखे ही क्यों, अशिक्षित लोगों के लिए भी यह कोई माया से कम नहीं है जो अपने जादू से उनको मोह लेती है।

कम्प्युटर का प्रचलन भारत में एक विस्तृत पैमाने पर करीब ८-१० साल पहले ही आया था और आज हर इंसान को अपनी गिरफ्त में रखने की क्षमता रख रहा है। जहाँ अंतरजाल के आने से लोगों तक खबर पहुँचने की गति, हर प्रश्न के उत्तर, कणों-कण सवालों के सरलतम जवाब, लोगों की उँगलियों के मोहताज हो गए हैं, वहीँ अंतरजाल ने धोखाधड़ी, उत्पात, व्यभिचार और न जाने कितने असामाजिक तत्वों को भी बढ़ावा दिया है। पर मैं यही समझता हूँ कि अंतरजाल भी एक सिक्का है जिसमें चित और पट दोनों हैं। अच्छा-बुरा, सही-गलत, यह सब हर व्यक्ति पर आ कर रुक जाता है और वही हो जाता है इनमें से किसी एक का स्वामी। वह यह तय करता है कि अंतरजाल से वह अच्छी बातें बटोरना चाहता है या बुरी बातों की गठरी।

पर जिस आसानी और तेज़ी से जानकारी फ़ैल रहा है, सबके लिए बहुत मुश्किल हो गया है खुद को, या फिर अपने परिवार के लोगों को इसकी पकड़ से बचा पाना। आज हर युवा के हाथ में स्मार्ट फ़ोन है, वह चौबीसों घंटे ऑनलाइन रहना चाहता है, फिर चाहे वो फेसबुक हो, ट्विटर हो, जीटॉक हो, वाट्सऐप हो या अन्य सूचना से रिश्ता रखने वाले ऐप्स।

पहले सो कर उठते थे, हथेलियों को धुंधली आँखों से देखते हुए धरती माँ को धन्यवाद देते थे हमारा भार संभालने के लिए। आज सुबह उठते हैं तो सोते हुए हथेलियों में रह गए फ़ोन को फटी-खुली आँखों से देख कर खुश होते हैं और धन्यवाद देते हैं नेटवर्क का जिसने सही सलामत सारे मैसेजों का आदान-प्रदान किया है। उठने से ले कर नहाने तक बीसियों बार फ़ोन देख लेते हैं कि दुनिया में क्या चल रहा है। किसने क्या पहना, क्या खाया, कहाँ जा रहे हैं, कब पहुंचेंगे, वगैरह, वगैरह। और यह गतिविधि दिन भर चलती है जैसे हमारी सांस चलती है। बेधड़क, बिना रुके (हाँ अगर बैटरी समाप्त हो जाए तो बात अलग है!)

कहने का अर्थ ये है कि अंतरजाल (और फ़ोन) ने हमें ग्रास लिया है और इससे बचने का कोई भी उपाय नहीं है। पर अगर हम इनके गुलाम होने की बजाय, ये अपने ईजाद-कर्ता के गुलाम रहे तो कैसा रहेगा? यह भी सत्य है कि जानकारी के अधिसेवन के कारण हमारी जिंदगियों की कई परेशानियां विशालकाय रूप ले रही हैं जिससे धीरे धीरे लोग परेशान हो रहे हैं (और कई अपनी ज़िन्दगी समाप्त भी कर रहे हैं!)

कुछ हफ्ते पहले मैंने रविवार को अंतरजाल बिलकुल बंद कर दिया (फ़ोन और लैपटॉप, दोनों पर)। सिर्फ एक दिन के लिए। जिस तरह विवाहित लोग अपनी बीवियों को मायके छोड़ आते हैं कुछ दिन के लिए, ठीक उसी तरह। उसे लौट कर तो वापस आना है पर कुछ दिन के लिए ही सही, छुटकारा तो मिला!

दिन भर सुकून रहा। न मेल देखना, न ट्वीट करना, न स्टेटस डालना, न किसी समाचार के सबसे पहले पढ़ने की जद्दोजहद। मन में बड़ी शान्ति थी। आराम से उठा, तन्मयता के साथ खाना खाया और इत्मिनान से अखबार पढ़ा। बाईक पर निकला तो अपनी रफ़्तार से। भागते-दौड़ते लोगों को देख कर हंसी आ रही थी क्योंकि उनको पता ही नहीं था कि भाग क्यों रहे हैं, किसलिए रहे हैं। ट्रैफिक सिग्नल हरी होते ही उत्प्रेरक (एक्सेलरेटर) तेज़ी से घुमाने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई। अपने आसपास के वातावरण का पूरा आनंद उठाते हुए अच्छा लग रहा था। कई सदियों बाद चिड़िया के चहचहाने की आवाज़ कानों तक पहुंची। ज़िन्दगी बह रही थी और मैं बह रहा था उसके साथ। ऐसा लगा जैसे पहले मैं उलटी धारा में बह रहा था ज़िन्दगी के, आज सुल्टा हुआ हूँ।

उस दिन एहसास हुआ कि “ज़िन्दगी जीने” और “ज़िन्दगी काटने” में बहुत अंतर है और ९९ फीसदी लोग दूसरे तबके के हैं। एक दिन की अंतर्जालीय मुक्ति ने दिल हल्का कर दिया था। पढने, हंसने, परखने, गाने और जीने की आज़ादी, भाग-दौड़ वाली ज़िन्दगी नहीं दे सकती है। अब लगता है कि हर इतवार अंतरजाल से ज्यादा से ज्यादा दूर रहूँगा और ज़िन्दगी जियूँगा।

ज़रूरत है इस एहसास को आज के तड़पती आत्माओं तक पहुँचने की। १० मिनट रुक कर पहले यह तो तय कर लो कि भाग कहाँ रहे हो? निशाना क्या है? अंतरजाल ज्ञान का माध्यम ज़रूर है पर अगर उसका गलत या अत्याधिक सेवन हर एक के जीवन को तबाह करने में सक्षम है। यह सिक्का आपके हाथ में हैं और तय करना है कि आप चित चाहते हैं या पट। यही आपके जीवन को सफल और शांतिपूर्ण बनाएगी। अंतरजाल आपका गुलाम होना चाहिए ना कि आप उसके।

9 thoughts on “अंतरजाल का जाल

  1. आपने भागमभाग से पीछा छुड़ा लिया है, बधाई। पर बाइक का सहारा क्‍यों लिया। पैदल ही घूमते बन्‍धु तो अधिक आनन्‍द आता। ……….बढ़िया।

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  2. धीरेन्द्र जी,
    मैं अपनी पोस्ट पढवाने के लिए टिप्पणी नहीं करता हूँ.. कुछ अच्छा लगे तो ही टिप्पणी करता हूँ..
    और चाहता हूँ कि लोग भी मेरे ब्लॉग पर तभी टिप्पणी करें अगर उन्हें कुछ अच्छा लगे न कि अपनी पोस्ट पढवाने की खातिर..
    रही बात ब्लॉग्स की, तो यह मेरा व्यक्तिगत ब्लॉग है और बाकी सब भी कभी-कभी अपडेट करता रहता हूँ.. जहाँ जब मन करे, आप टिप्पणी कर सकते हैं, कोई बंदिश नहीं है..

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