अँधा कौन ?

बचपन उस अंधे को देखकर यौवन हो गया था…
जब अंकुर अपनी माँ के साथ मंदिर से बाहर आता तो उसे देख कर विस्मित हो जाता.. उसे दुःख होता…
एक दिन वह अपने दुःख का निवारण करने उस अंधे के पास पहुंचा..

पहुंचा और बोला – “बाबा, अँधा होने का आपको कोई गम है?”
अँधा बोला – “बेटा, यह दुःख बताने का नहीं.. यह आँखे किसी बच्चे की हंसी देखने को तरसती है, एक युवती के लावण्य के सुख को तरसती हैं, एक बुज़ुर्ग के बुजुर्गियत की लकीरें उसके चेहरे पे देखने को तरसती हैं… और हाँ इस धरती.. नहीं नहीं स्वर्ग को देखने को तरसती है.. बहुत दुःख है.. पर किस्मत खोटी है बेटा..

अंकुर आगे बढ़ गया..
वो सोच रहा था – “क्या अँधा होना इतना बुरा है?”

समय भी बढ़ता रहा…

अंकुर अब बड़ा आदमी हो गया.. पर विपरीत इसके, दुनिया में हर चीज़, लोगों की सोच जैसी छोटी हो रही हैं…
आज अंकुर अपनी पत्नी के साथ मंदिर आया है…
वो अँधा वहीँ हैं.. उसकी तरक्की नहीं हुई है.. इतने वर्षों तक भगवान के घर के सामने हाथ फैलाना व्यर्थ ही रहा.. ठीक ही कहा है – “भगवान भी उसकी मदद करता है जो खुद की मदद करे”

अंकुर आज फिर रुका और फिर से वही प्रश्न किया – “बाबा, अँधा होने का आपको कोई गम है?”
अंधे ने आवाज़ पहचान ली… बोला बाबू शायद आप बड़े हो गए हैं… आवाज़ से पता चलता है.. पर अब मैं बहुत खुश हूँ.. जहाँ बच्चों के चेहरों पर बस्ते का बोझ झलक रहा है, जहाँ एक-एक युवती के लावण्य पर प्रहार होते देर नहीं लगती, जहाँ बुजुर्गों की बुजुर्गियत वृद्धाश्रम में किसी कोने में पान की पीक के पीछे धूल चाट रही है… जहाँ ये धरती नर्क बन रही है.. वहां आज मैं बहुत खुश हूँ की भगवान को आँखें “देने” के लिए नहीं कोस रहा हूँ.. आज आँखें होती तो ऐसी चीज़ों को देखकर खुद ही आँखें फोड़ लेता… आज मैं खुश हूँ.. किस्मत बहुत अच्छी है बेटा..
अंकुर आगे बढ़ गया..

वो सोच रहा था – “क्या अब अँधा होना अच्छा है?”

2 thoughts on “अँधा कौन ?

  1. आपकी इस कहानी पे एक ग़ज़ल याद आती है ..

    मैंने कोई सूरज कोई तारा नहीं देखा
    किस रंग का होता है उजाला नहीं देखा
    …..

    सुनते है की अपने ही थे घर फूकने वाले
    अच्छा हुआ मैंने ये नज़ारा नहीं देखा

    Like

Leave a reply to डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक Cancel reply