मधुशाला की राह

नौकरी में रमे हुए राकेश को १ ही साल हुआ था.. अपने कॉलेज में सबसे अच्छे छात्रों में शुमार था और नौकरी में भी अव्वल..

जब अंटे में दो पैसे आने लगे तो मनोरंजन के साधन बदलने लगे.. जहाँ एक ढाबा ही काफी हुआ करता था दोस्तों के साथ, आज बड़े-बड़े होटलों में जाता था..
कभी दारु-सिगरेट नहीं पी पर कुछ ही दिन पहले दोस्तों के उकसाने पर शुरू कर दी.. सोचा कि अब आज़ाद है.. और दोस्तों ने कहा कि शराब पीने से दोस्ती बढ़ती है, रुतबा बढ़ता है… थोड़े पैसे भी हैं.. कुछ नया करते हैं.. कई बेहतर विकल्पों को दर-किनार करते हुए मधुशाला की राह चुनी..

कुछ ही महीनों में भारी मात्र में मय-सेवन होने लगा.. बेवक़ूफ़ दोस्तों ने उसे और उकसाया और अब तो वह पीकर हुड़दंग भी मचाता, आस-पास के लोग परेशान होने लगे..

एक दिन रात को लौटते वक़्त एक कार को अपनी बाईक से टक्कर दे मारी.. नशे में कहा-सुनी भी कर ली.. घर पहुँचने से कुछ पहले पीछे से बाईक पर उसी कार का ज़बरदस्त धक्का लगा और सुनसान रास्ते पर राकेश की लहू से लथपथ लाश अगली सुबह शहर भर में चर्चा में थी.. मधुशाला की राह का अंत हो चुका था..

राकेश के जनाज़े में वही लोग नदारद थे जो कुछ दिनों पहले उसके साथ बैठकर पीते थे.. वो मधुशाला में बैठे, किसी और राकेश का इंतज़ार कर रहे थे..

16 thoughts on “मधुशाला की राह

  1. अधिक पीने वालो का अंत यही है
    बहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,
    प्रतीक जी,..आप भी दूसरों के फालोवर बने तथा जो आपका फालोवर है और आपके पोस्ट में आता है उसके पोस्ट में जाकर जरूर अपने विचार दे,यही ब्लोगजगत का शिष्टाचार है,मेरी बातों अन्यथा ना ले,

    NEW POST काव्यान्जलि …: चिंगारी…
    NEW POST…फुहार…हुस्न की बात…

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  2. धीरेन्द्र जी,
    मेरी कोशिश रहती है कि मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को पढ़ सकूं.. पर समय के अभाव में कुछ छूट जाते हैं जिसका अफ़सोस मुझे भी रहता है.. पर कोशिश जारी रहेगी 🙂

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  3. जिस तरह मदिरा का प्रचलन विगत वर्षों में बढ़ा है…वो चिंतनीय है…काफी पहले हेलमेट का एक एड आता था…जिंदगी में रिटेक नहीं होता…दोस्ती के बीच अपना भला बुरा समझ आना चाहिए…विवेक का इस्तेमाल भी ज़रूरी है…

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  4. दुखद है!!!! मगर एक घटना से बाकी के युवा सबक भी तो नहीं लेते…….

    सार्थक पोस्ट
    अनु

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