संस्कार

रमेश बस स्टॉप पे खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था। दिन काफी व्यस्त रहा था ऑफिस में।

स्टॉप से थोड़ा आगे बाईं ओर 2 मोहतरमाएं खड़ी थीं। एक के सलवार-दुपट्टे और एक के जींस-टॉप से समझ आ गया कि ये माँ-बेटी हैं और ज़रूर ही अपनी कार का इंतज़ार कर रही हैं। और दोनों के पहनावे से अमीरी टपक रही थी। रमेश सीधा-साधा मध्यम-वर्गीय इंसान, एक आह तो उठी मन के किसी कोने में, ये धन-दौलत का नज़ारा देख कर।

इतने में कहीं से एक 6-7 बरस की लड़की आई। बिलकुल मैले कपड़े ग्रीस लगे, बाल बिखरे हुए फंसे हुए झाड़ की तरह, नंगे पैर और खरोंचें, धंसी हुई आँखें और भीख मांगते हाथ।

उसका हाथ बढ़ता हुआ लड़की के जींस को लग गया।
इतने में लड़की चीख उठी “हट गन्दी, ममा देखो ना पार्टी के लिए पहने हुए कपडे गंदे कर दिए।
ममा भी बोली पड़ी “भाग यहाँ से गंदी कहीं की। कपड़े गंदे कर दिए सारे। अब बदलने पड़ेंगे।
इतना कह कर दोनों कुछ सरक से लिए, उस लड़की से दूर।

1 मिनट भी नहीं हुआ था कि बस स्टॉप पर खड़ी एक और 6-7 बरस की लड़की आई और उस गरीब लड़की को 2 लॉलीपॉप थमा कर पीछे अपनी माँ के पास चली गयी। रमेश ने देखा कि उसकी माँ ने बच्ची का गाल सहला दिया जैसे कह रही हो “शाबास”

आस पास खड़े लोग हैरत में थे (पर अमीर मोहतरमाएं अभी भी अपनी अमीरी में व्यस्त थी और अपने कपड़े  झाड़ रही थी) और रमेश सोच रहा था “माँ-बाप का, बचपन से ही अपने बच्चों में अच्छे संस्कार देना कितना ज़रूरी है, यह बात आज उसे व्यावहारिक तौर पर देखने को मिल गया था।

वह खुश था अच्छाई का बुराई को खदेड़ते देख। संस्कार का अमीरी को पटकते देख। एक छोटी बच्ची को अच्छा बनते देख।

14 thoughts on “संस्कार

  1. वह प्रणाली जो एक को अमीरी का अहन्कार देती और दूसरे को भीख मांगने को बाध्य करती है, धिक्कृत है।

    Like

  2. बचपन से ही बच्चो को अच्छे संस्कार सिखाने चाहिए..
    तभी बड़े होकर वे संस्कारी बनते है…
    बहुत अच्छी सीख देती कहानी..
    🙂

    Like

Leave a reply to GYANDUTT PANDEY Cancel reply