मन की बात

मैंने कई साल पहले ब्लॉगिंग शुरू की थी जब मैं कॉलेज में था और हिन्दी प्रेस क्लब का अभिन्न अंग था। कुछ सोचकर शुरू नहीं किया था, बस यूँ ही ब्लॉगिंग का माहौल था और मैं भी उस रौ में बहने की चाह रखता था। जब पहला पोस्ट डाला था तो लगा नहीं था कि कोई अनजान इंसान आ कर उसपर अपने विचार और टिप्पणी देगा, पर जब वो पहली टिप्पणी ब्लॉग पर टिमटिमाई, उस पल को लिखकर नहीं बयाँ किया जा सकता। वो अनुभूति शायद उन कई पलों जैसी है जो आपके जीवन में पहली बार घटती हो और मनभावन हो। एक अलग सुख का एहसास

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इस सफ़र में मैं कई लोगों से जुड़ा जो मुझसे मीलों दूर थे पर लेखन के कारण दिल के पास। फिलहाल इस सफ़र को शुरू हुए करीब ९ साल होने वाले हैं और दिली इच्छा है कि मरते दम तक इसे जारी रखूँ। सच कहूँ तो ब्लॉगिंग करना आसान नहीं होता और मैंने १० में से ९ ब्लॉग्स को बेमौत मरते ही देखा है। निरंतरता इसकी कुंजी है जो हर किसी को हासिल नहीं होती और मुझे इस बात से दिल में बहुत तल्लीनता है कि मैं इसे जारी रखने में कामयाब हुआ।

आज कुछ पुराने लेख पढ़ रहा था और उनमें आये कुछ टिप्पणियाँ भी। भावुक हो उठा जब कुछ टिप्पणियों में अपने लेखन और विचारों की तारीफ़ सुनी, थोड़ा अच्छा भी लगा और फिर ग्लानि से भर गया। ग्लानि और पश्चाताप इस बात की हुई कि उन लोगों को, जिनमें से कई अनजान थे और कई आज भी जानने वाले हैं, उनको मुझसे काफी उम्मीद थी, उनको मेरे लेखन में शायद ऐसी झलक दिखी जिससे वो प्रभावित हुए और मेरा हौंसला बढ़ाने के लिए मेरे प्रति अपने सकारात्मक विचार दिए और आशा की कि मैं इस विधा में और आगे बढूँगा। पर मुझे लगता है कि अब तक मैंने उन लोगों के शब्दों के साथ न्याय नहीं किया है, मैंने शायद उस ओर इतना प्रयास ही नहीं किया है जितना मुझे उन शब्दों को सार्थक करने के लिए करना चाहिए था। जीवन का बहाना दे कर निकल जाना सबसे आसान तरीका है जो कि मुझे पसंद नहीं है। अगर कुछ नहीं हो पाया तो उसके लिए जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हो सकता हूँ। मैं कईयों को देखता हूँ जिन्होंने निरंतरता और अथक प्रयास से अपने मुकामों को हासिल किया है और मुझे उन्हें देखकर हमेशा लगता है कि मैं भी ऐसा कर सकता हूँ।

शायद मेरी अकर्मण्यता मुझपर हावी हो गई और मैं उन लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा जो शायद वो टिप्पणी करके अब उस बारे में भूल भी चुके हों। मैंने ये पाया है कि इस दुनिया में ज़्यादातर लोग आपको नीचे खींचकर खुद ऊपर चढ़ने की ही कोशिश में है और चंद लोग जो आपके हैं, आपको चाहते हैं, वो आपको सहारा देते हैं, आपसे उम्मीद भी रखते हैं, आपके सपनों के साझेदार भी होते हैं। अगर उन लोगों को छोड़कर मैं इस ज़िन्दगी में आगे बढूँ तो यह निरर्थक है।

आज मुझे ये भी एहसास हुआ कि ब्लॉग शुरू करना मेरे लिए एक वरदान था। आज मैं इतनी पुरानी बातों को पढ़कर अभिभूत हुआ हूँ और मैं इस अकर्मण्यता की ग्लानि से निकलकर अपने लक्ष्य को फिर से निर्धारित कर उस ओर प्रयासरत रहूँगा। मुझे ख़ुशी है कि कईयों के सालों पुराने प्रोत्साहन को मैंने आज फिर से पढ़ा और इससे मुझे उर्जा मिली। हर इंसान को समय-समय पर प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है नहीं तो वो थक कर गिर जाता है और अपने लक्ष्यों से भटक जाता है। आज मैं उन तमाम लोगों को धन्यवाद कहना चाहता हूँ जिनकी बदौलत मुझे अपनी विधा में पुनः ज़ोरशोर से कुछ करने का बढ़ावा मिला है।

मैं अपनी ओर से प्रयास में कोई कमी नहीं रखूँगा और अपने लेखन को और भी परिपक्व, विचारशील और प्रासंगिक रखने की कोशिश करूँगा। आशा है कि आप सभी का प्रोत्साहन और आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन मुझे निरंतर मिलता रहेगा जिससे ज़िन्दगी में कुछ मुकाम हासिल कर सकूँ जहाँ की चाह कई साल पहले पाली थी।

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