- देश के किसी भी कोने में रहते हों आप…
- ये है फौजी भाईयों का कार्यक्रम.. जयमाला..
- अब आप सुनेंगे, अगला कार्यक्रम, हवामहल..
- इस गाने की फरमाइश आई है जिला बरकाकाना से, टीनू, चीनू, उनके मम्मी-पापा, चाचा-चाची और अन्य भाई-बहन..
मैंने विविध भारती को प्रथम बार सुना था २००४ में, जब मैं कोटा में जे.ई.ई. की तैयारी के लिए गया था और ये वो दौर था जब मुझे उस समय के नए गानों से चिढ़ सी थी। कारण यही हो सकता है कि घर पर पुराने गीतों का ही माहौल था और उसके अलावा नए गाने सुनने का मौका कहीं मिला ही नहीं। भारतीय संगीत भी नब्बे की श्यामल सदी से गुज़रकर उजाले की ओर आ रहा था।
मुझे पढ़ते-पढ़ते संगीत सुनने का बहुत शौक था (आज भी है) और उस समय एक टेप-रिकॉर्डर और अथाह कैसेट्स थे मेरे पास जिनको अल्टा-पल्टी करके दिन के दिन निकाल दिया करता था। मुझे याद है कि मेरे पास आर.डी.बर्मन के गीतों से लबरेज़ पाँच कैसेट थे और उनमें से कई गीत तो ऐसे हैं जो आज भी बजते हैं तो मुझे कोटा के अपने कमरे में वापिस ले जाते हैं और ऐसा लगता है कि कल ही की बात तो थी जब घिस-घिसकर पढ़ाई कर रहा था और लक्ष्य केवल आई.आई.टी. था (वैसे मैं बिट्स पिलानी में पढ़ा हूँ)। कैसी अजीब बात है ना कि ऐसे कितने ही गीत हैं जो कहीं बज उठें तो आपको समय के उस पटल पर घसीटकर ले जाते हैं जो आपके ज़हन में वैसे ही न आते हों और आते से ही आपके चेहरे पर बेझिझक हँसी आ जाती है।
विविध भारती (देश की सुरीली धड़कन) का शौक भी मुझे वहीं हुआ और हुआ तो हुआ, आजतक बेधड़क बना हुआ है और इसे तो मैं किस्मत का चमकना ही मानूँगा। उस समय युनुस खान, रेडियो सखी ममता सिंह, कमल शर्मा, अमर कान्त दुबे, और भी न जाने कितने नाम थे जो एक छात्र के लिए अनदिखे साथी थे। ऐसा नहीं था कि मैं उनको खत लिखता था या फ़ोन पर बात करता था पर उनकी एकतरफा आवाज़ ही से आपसी बातचीत हो जाती थी। जयमाला, हवामहल, छायागीत, पिटारा, उजाले उनकी यादों के, इत्यादि कितने सारे कार्यक्रम हैं जो मानस पटल पर आज भी अपना जादू छोड़े हुए हैं। देश दुनिया की खबर हो, नए-पुराने गीत हों, ज्ञानवर्धक बातें हो या यूँ ही हँसी-ठिठोली हो, ये एक सम्पूर्ण पिटारा था और मैं तो आज भी इसे अग्रणी मानता हूँ।
पिलानी गया तो फिर कई सालों के लिए यह छूट गया पर फिर दिल्ली आया तो वापस इससे जुड़ाव हुआ और आज तक बना हुआ है। मैंने इसी बीच कई और भी रेडियो स्टेशन सुने जो कि युवाओं के लिए ख़ास, प्यार के लिए ख़ास, कूलता के लिए ख़ास और भी न जाने किस-किस चीज़ों के लिए ख़ास बने हैं पर विविध भारती का कोई सानी नहीं। इसका स्तर आज भी उतना ही ऊँचा है जितना ये पहले हुए करता था। जहाँ अन्य स्टेशन पर आर.जे. ताबड़तोड़ बातें करते हैं, प्रैंक खेलते हैं, बहुत से गिफ्ट वाउचर बाँटते हैं और हर तरह से सुनने वालों को लुभाने की कोशिश करते हैं, वहीं विविध भारती अपने सरल किन्तु सम्पूर्ण प्रसारण से अपनी धरती पर टिका हुआ है।
कुछ दिनों पहले एक रेडियो पर एक कार्यक्रम आ रहा था जहाँ पर उस कार्यक्रम के नाम में “कमीने” शब्द का प्रयोग होता है। जिन शब्दों का प्रयोग हम अपने घरों पर आमतौर पर नहीं करते हैं, वही धड़ल्ले से उपयोग में लाए जा रहे हैं। यहीं पर कार्यक्रम की गुणवत्ता बयाँ होती है। एक और कार्यक्रम है जहाँ पर एक लड़का/लड़की अपने पति/बॉयफ्रेंड/गर्लफ्रेंड पर लॉयल्टी टेस्ट करवाते हैं। जहाँ मुझे पता है कि यह सब छद्म है और सब कुछ पहले से ही तय होता है, पर सुनने के बाद यही समझ में आता है कि फूहड़ता किसे कहते हैं। लेकिन ज़माने में करोड़ों युवा हैं जिनको यह सब सुनकर मज़ा आता है, इसलिए ये सब बिक भी रहे हैं।
कल विविध भारती पर हवा महल सुन रहा था तो अचानक से ये खयाल आया कि अरे, रेडियो नाटक तो किसी और रेडियो स्टेशन पर आते ही नहीं हैं! और क्या अद्भुत होते हैं ये नाटक, बिलकुल मज़ा आ जाता है। कलाकार, निर्देशन, कहानी, डायलाग, सब कुछ सटीक और मजेदार! तभी विविध भारती पर लिखने का मन हो उठा और इससे जुड़ी यादें यहाँ टेप रहा हूँ।
मुझे मालूम है कि आप लोगों के विविध भारती से जुड़े और भी मज़ेदार और दिल-छू लेने वाले किस्से होंगे जिन्हें आप टिप-बक्से में ज़रूर हमारे साथ साझा करें। यूँ ही कुछ गुफ्तगू होगी आपके और हमारे बीच, विविध भारती के जरिये.. नहीं?
कभी विविध भारती बड़ा लोकप्रिय हुआ करता थे. आपने पुराने सुनहरे दिन याद दिला दिये. 😊
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