१० वर्ष, एक बहुत बड़ा अंतराल, जहाँ पर ज़िन्दगी की उथल-पुथल और थपेड़ों को देखते-सहते-गिरते-उभरते हम यहाँ आ पहुँचे जब कह सकें कि १० वर्ष हो गए इस बात को।
पर ऐसा लगता नहीं है कि ये १० वर्ष यूँ ही निकल गए। कल ही की तो बात थी जब अपने कॉलेज के एक छोटे से कमरे में बैठे, गरमाती लू के चक्कर में किंवाड़ को खुला रखे, अध्-टूटी खिड़कियों से सरसराती गर्म-ठंडी हवा, खट-खट कर चलते पंखे और अपनी पूरी लौ के साथ जलते उस ट्यूबलाइट के तले ये सफ़र शुरू हुआ था।
ब्लॉगिंग की नई दुनिया थी और हम भी नए, नौजवान युवा थे, जो विचारों और जोश से भरपूर थे। ऐसा कुछ करने का दिमाग में नहीं था जो कि दुनिया हिला दे। किन्तु कुछ अलग करना था और हिन्दी में ब्लॉगिंग का सिलसिला उसी बिट्स पिलानी के प्रांगण में शंकर भवन के कमरा संख्या २९० के एक छोटे से कमरे से आरम्भ हुआ जो इश्वर की कृपा, बड़ों के आशीर्वाद और दोस्तों के निरंतर प्रोत्साहन से आज इस मुकाम पर आ पहुँचा है जब गर्व के साथ कह सकता हूँ कि १० वर्ष से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ।
जीवन के कई हलके-फुल्के पल और कई जटिल पल भी इसी ब्लॉग-यात्रा में कैद हैं जिन्हें अंतरजाल पर आ कर कोई भी कभी भी टटोल सकता है। कैसे एक यादों का बक्सा बन गया, पता ही नहीं चला। कई लोग जुड़े, कई से बिछड़ गए और जीवन के सफ़र की ही तरह यह सफ़र भी याद दिलाता रहा कि निरंतरता ही सफलता का मूल मन्त्र है।
अब जीवन और जटील हो चला है। उम्र के साथ-साथ ज़िन्दगी की मुश्किलें भी बड़ी होती चली जाती हैं, ये बात तो पता थी, पर अनुभव से यह और भी स्पष्ट होती चली जा रही है।
ब्लॉग के शुरुआती दौर में बहुत लोगों का प्रोत्साहन था और यदा-कदा इस पर बातें भी होती रहती थी और इसी तरह नए विचारों का आगमन और लेखन चलता रहता था पर बीते कुछ वर्षों में यह बहुत मुश्किल हो गया है। लोगों से कम बातें और ट्विटर, फेसबुक, कोरा, इत्यादि जैसे अंतर्जालीय नुक्कड़ों के आने से ऐसा लगता है कि मेरी लेखनी और मेरे भिन्न विचारों पर एक अजान पहरा-सा लग गया है जो मुझे बहुत खाता रहता है, पर मैं इसका कोई जवाब ढूँढने में असक्षम सा हूँ। पता नहीं, किस तरह इस मायाजाल से निकलकर लेखनी की निरंतरता और गुणवत्ता को बनाए रखूँ।
चूँकि आज के समय में यह एक आम समस्या है, इसलिए मुझे लगता है कि कुछ ज्ञानी-जनों से इस बारे में किसी तरह के सकारात्मक विचार ज़रूर सुनने को मिलेंगे और मैं फिर से वैसा लेखन करूँगा जो आज से ४-५ वर्ष पहले किया करता था। मुद्दे बहुत हैं, किन्तु उनको शब्दों में उकेरने की ललक कम होती जा रही है। आखिर १० वर्ष तक हिन्दी ब्लॉगिंग करने का कुछ असर तो होना ही था, पर मुझे पूर्ण भरोसा है कि इससे निकलकर जल्द ही आगे का रास्ता तय होगा।
किन्हीं विशेष लोगों का नाम तो नहीं ले पाऊँगा, पर इतने सारे लोग जो इस यात्रा में सह-यात्री की तरह साथ देते रहे, उनका मैं दिल से बहुत धन्यवाद करना चाहूँगा। कई लोगों का मार्गदर्शन हमेशा रहा और मैं उनका भी शुक्रगुज़ार हूँ क्योंकि एक नौसिखिये के लिए वो गुरु-समान ही रहे।
आशा है कि ब्लॉगिंग की यह यात्रा यूँ ही बदस्तूर जारी रहेगी और मेरे विचारों को आप तक अपने शब्दों में पहुँचाने का आनंद मैं उठाता रहूँगा। आप भी अपने विचारों से अवगत करवाते रहें, इसी आशा के साथ… जय राम जी की!
वाह हार्दिक शुभकामनाएं… एक दशक हो गया!
LikeLiked by 1 person
बधाई शानदार दशक की. कभी कभी ऐसा होता है कि लिखना रुक जाता है. सप्रयास जितना लिख सको, लिखते जाओ. फिर स्पीड कब आ जायेगी, पता भी नहीं चलेगा. अनेक शुभकामनायें.
LikeLiked by 1 person