
इस शहर में लोग सोते नहीं हैं
बस भाग-दौड़ से कुछ वक्त दूर हो जाते हैं
क्या तुमने कभी देखा है यहाँ सुबह होते हुए?
मैंने तो हैंडलों में लटकते हाथों को ही सुबह मान लिया है
वो शरीर एक दूसरे को चूमते-लिपटते बोगियों के मंज़र को देखा है
समय को दौड़ कर पकड़ने की कोशिश को देखा है
इस शहर में ना, रात नहीं होती
यहाँ के लोग सोते नहीं हैं
बस कुछ पल के लिए मूक बन, आँखें बंद कर लेट जाते हैं
यहाँ की अकुलाती-झुंझलाती आवाज़ों को दबाते हैं
इस शहर में ना, ज़िन्दगी नहीं होती
यहाँ के लोग जीते नहीं हैं
बस ज़िंदा होने भर का छलावा करते हैं, खुद को ही ठगते हैं
अपने अंदर की मौत को उजागर होने से बचाते हैं
इस शहर में ना, ठहाके नहीं होते
यहाँ के लोग हँसते नहीं हैं
बस धीमे से मुस्कुराते हैं, ख़ुशी को भी दबाते हैं
अपनी अनगिनत नाकामियों को मुस्कराहट तले सहलाते हैं
इस शहर में ना, आँसू नहीं दिखते हैं
यहाँ के लोग खुल के रोते नहीं हैं
रोना हारे हुओं की, पराजय की निशानी है
यहाँ के लोग उसे कोरों के पीछे छुपाते हैं
जग हँसाई से खुद को बचाते हैं
कैसा अजीब सा है ना ये शहर?
लोग यहाँ ज़िन्दगी की खोज में आते हैं
और सिर्फ
जीवित होने को ही ज़िन्दगी समझ बैठते हैं
मैंने कभी माया को रूप में नहीं देखा है
पर फिर सोचता हूँ
मैंने ये शहर तो देख ही लिया है
ये शहर माया करता नहीं है
ये शहर, स्वयं एक माया है
Very nicely penned.
LikeLiked by 1 person
लोग यहां ज़िन्दगी की खोज में आते हैं…… क्या खूब कही है | साधुवाद ! आज के व्यस्त जीवन का एक शहर के माध्यम से जीवंत चित्रण !
LikeLiked by 1 person
Love this one. 🙂
LikeLike