“सड़क की हालत से देश की हालत का पता चलता है”
– कोई महान व्यक्ति
ऐसा हमारे ख़ुफ़िया पत्रकार सुकडू सिंग ने कहीं पढ़ा था और इसी उद्धरण के हवाले से आज आपके सामने पेश है सुकडू सिंग की हमारे चहेते नेता श्री भोजभक जादू से विशेष बातचीत के कुछ अंश।
सुकडू: भोजभक जी, जैसा कि किसी महान व्यक्ति ने कहा है, “सड़क की हालत से देश की हालत का पता चलता है” – इस पर आपके क्या विचार हैं?
श्री भोजभक: देखिये सिंग जी, जिस भी महान व्यक्ति ने ये पंक्तियाँ इस देश को दी हैं, पहले तो मैं उनका हृदय-तल से शुक्रिया-अदा करना चाहता हूँ। मैं इस बात से संपूर्णतः सहमत हूँ कि देश की हालत का अनुमान वहाँ पर बनी सड़कों से लगाया जा सकता है। जैसा कि आपको उदाहरण के तौर पर बताना चाहूँगा, अगर सड़कें टूटी-फूटी हों तो इसका मतलब है कि वहाँ पर अभी विकास की संभावनाएँ बहुत हैं। गड्ढे भरे सड़कों से पता चलता है कि अभी इस देश में बदलाव की लहर है और हम जैसे नेताओं के लिए देश के लिए अपना योगदान देने का सुनहरा अवसर। इसी बात को ध्यान रखते हुए मैं अपने क्षेत्र कि सारी सड़कों पर कार्य करवाता हूँ। हें हें।
सुकडू: पर भोजभक जी, क्या आपको नहीं लगता कि टूटी-फूटी सड़कें देश की बीमारू स्थिति को उजागर करती हैं? क्या ये यह नहीं दर्शाता कि इतने सालों में इस क्षेत्र में कुछ भी कार्य नहीं हुआ?
श्री भोजभक: अरे ये आप बातों को कहाँ से कहाँ उड़ा ले गए सुकडू जी? परजातंत्र ऐसे ही थोड़े न चलता है। मैं तो हर चीज़ में सकारात्मकता खोजने का प्रयास करता हूँ पर आप मीडिया वाले हर बात में नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। अगर सड़क टूटी हुई है तो ज़रूर वहाँ पर बहुत कर्मठ लोग रहते हैं क्योंकि दिन-रात काम करने वालों की ही चप्पलें घिसती हैं और उनके आस-पास की सड़कों को भी इसकी मार झेलनी पड़ती है। जहाँ रगड़ ज़्यादा होगी, वहाँ नुक्सान भी तो अधिक होगा। टूटी सड़कें ये दर्शाती हैं कि लोगों के लिए भरपूर काम उपलब्ध हैं और एक नेता होने के तौर पर मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपने लोगों के लिए काम-काज उपलब्ध करवाया है।
सुकडू: भोजभक जी, पर इन खराब सड़कों के कारण इतने लोगों को स्वास्थ्य समस्याएँ हो रही हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?
श्री भोजभक: सुकडू बाबू, आपने शायद अर्थव्यवस्था के बारे में बहुत पढ़ा-सुना नहीं है इसलिए आप बातों की गहराई में नहीं जा रहे हैं। आपको पता है पहले हमारे जिले में केवल २ अस्पताल थे और आज कितने हैं? कुल ९! हाँ, और इसके कारण न केवल लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ ही मिल रही हैं बल्कि उतने ही अधिक लोगों को आजीविका भी मिली है और उनका घर चल रहा है। ये ऐसे ही संभव नहीं हुआ। इसके पीछे इन टूटी-फूटी सड़कों का अदम्य योगदान रहा है। टूटी सड़कों पर जो लोग आवाजाही करते हैं उसके कारण ही उनका शरीर भी यदा-कदा टूटता है और जब ऐसा होता है तो वो सीधे पहुँचते हैं चिकित्सकों और दवाई दुकानों पर। यह तो एक चक्र है जिसके केंद्र, जिसकी धुरी है ये बेचारी सड़कें। और आप कह रहे हैं कि यह एक समस्या है? आपकी बात निरी बेतुकी है। आप विस्तृत चित्र नहीं देख रहे हैं पत्रकार महोदय।
सुकडू: भोजभक जी, आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि हम जनता जनार्दन कुछ जानते ही नहीं है। महोदय आप तो बहुत ही दूरदर्शी हैं।
श्री भोजभक: पत्रकार साब, दूरदर्शिता केवल यहीं समाप्त नहीं हो रही है। टूटी सड़कों से जिले की दौड़ बहुत दूर की है। इसका एक और प्रत्यक्ष लाभ आपको बताए देता हूँ। इन्हीं सड़कों पर मौजूद गड्ढे, बेढंगे गतिरोधक और अनाप-शनाप, बेतुके यातायात सिग्नलों का भी लाभ हमारे जिले को लगातार मिल रहा है। आपको तो पता है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे शहर में वाहनों की संख्या बेदम बढ़ी है जो एक बड़ी समस्या है।
सबसे पहले तो जब सड़कों की हालत पतली होती है तो पतली गलियों से निकलने वाले इन वाहन-चालकों को वाहन निकालने में थोड़ी हिचकिचाहट होती है जो हमारे पर्यावरण के लिए अच्छी खबर है।
दूसरी बात यह है कि जितने भी वाहन सड़कों पर आ रहे हैं, वो इन सड़कों की अभियांत्रिकी जादूगरी में फँस जाते हैं और कभी पंक्चर के शिकार होते हैं, कभी इंजन में खराबी के। अब ऐसा होना लाखों लोगों के घरों में चूल्हे की लौ का काम करती है क्योंकि बाइक मिस्त्री, कार मिस्त्री, शरीर मिस्त्री इन्हीं ख़राब वाहनों को ठीक कर के अपने बच्चों के लिए साइकिल का प्रबंध कर पाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि मैं उन फूल जैसे बच्चों की खुशियों को सुन्दर, गड्ढा-मुक्त सड़कों तले रौंद दूँ तो वो मुझसे नहीं हो पाएगा।
सुकडू: जनाब, ऐसी अजीबोगरीब बातें न मैंने पहले सुनी और न ही सोची। आप तो वास्तव में नेता बनने लायक हैं क्योंकि अपनी नाकामी भरी बीज से भी सफलता के पेड़ उगा लेना तो कोई आपसे सीखे।
श्री भोजभक: सुकडू जी, आप इन टूटी सड़कों के माध्यम से पत्रकारों, चित्रकारों, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर, ब्लॉगर और झोला-लटकू आन्दोलनकारियों के हित की बात तो भूल ही गए।
गड्ढे दिखे नहीं कि पूरा मीडिया लेखों, चित्रों, कार्टूनों से पट जाता है। पटता अखबार है, समाचार चैनल है पर इस पटने के कारण ही तो आप लोग विज्ञापन बेचने वालों को पटा पाते हैं। घंटों बहसें-चर्चाएँ होती हैं। बवाल कटता है, जनता मौज मारती है, कुछ देर अपने दुःख को मात दे पाती है। मीडिया नोट छापती है। ब्लॉगर और व्लॉगर टिप्पणियों और व्यूज़ से पैसे बनाते हैं। आन्दोलनजीवी बाहर बैठे अपने आका से इसी आधार पर फंडिंग की मांग करता है।
तो आप ही बताइए, टूटी सड़कों का जो अप्रतिम लाभ जनता से लेकर नेताओं तक को मिल रहा है, तो अर्थव्यवस्था की इस अविरल धारा को आप गिट्टी, गारी, तारकोल और रोडरोलर के नीचे रसातल में धकेलने पर क्यों तुले हैं?
सुकडू: नेता जी, भारी मिस्टेक हो गया जो आपकी दूरदर्शिता से वंचित मैं, आपके लिए मन में कुंठा पाले बैठा था पर आज आप से बात करके मेरी आँखें, कान और मस्तिष्क सब खुल गए हैं। आपकी जय हो! अब जब भी किसी टूटी सड़क पर हिचकोले खाता हुआ निकलूँगा तो भारत की अर्थव्यवस्था और आपकी स्वर्णिम वाणी याद आएगी।
चलिए मैं चलता हूँ, शहर की टूटी-सड़कों का आनंद लेने के लिए। पर कल सुबह सड़कों की बदहाली पर मेरा लेख पढ़ना मत भूलिएगा। हें हें हें।