यह गीत एक प्रतियोगिता के लिए लिखा और संगीतबद्ध किया था. इस स्वतंत्रता दिवस पर सबको उम्मीद है एक बदलाव की और वो बदलाव की शुरुआत खुद से होगी.सब ओर है भ्रष्टाचार की बातदेश को जकड़े जिसके दांतआओ अब सब कहेंमुझसे होगी शुरुआत!लूटा है नेताओं ने देश तो क्या?बदला है सच्चाई ने भेष तो क्या?उठा … Continue reading मुझसे होगी शुरुआत!
तपस्या
"तपस्या", एक ऐसा शब्द है जो हमें प्राचीन काल में ले जाता है जहाँ एक इंसान योगासन में बैठा, भगवान को याद कर रहा है और घोर तन्मयता के कारण अपने आस पास की हलचल से बेखबर है। कुछ लोग "तपस्या" शब्द से ऐसी कहानियां भी याद करते हैं जो हमें बचपन में सुनाई जाती … Continue reading तपस्या
माँ का आँचल
ऑडियो यहाँ सुनें:https://www.reverbnation.com/widget_code/html_widget/artist_1159585?widget_id=50&pwc%5Bdesign%5D=default&pwc%5Bbackground_color%5D=%23333333&pwc%5Bincluded_songs%5D=0&pwc%5Bsong_ids%5D=16995355&pwc%5Bphoto%5D=0&pwc%5Bsize%5D=fitप्रशांत एक सुशिक्षित और भद्र इंसान था। घर से दूर रहते ५-६ साल हो गए थे। अब नौकरी कर रहा था ३ सालों से। उससे पहले पढाई। दिल का बड़ा सख्त था। साल में २-३ बार ही घर आ पाता। नौकरी पेशा आदमी की सांस और आस दोनों उसके मालिक के हाथ में होती है। … Continue reading माँ का आँचल
उम्मीदें
काश ये ऐसा हो जाता, काश वो ऐसा हो जाये। पर ये, वो क्यों नहीं? पर वो, ये क्यों नहीं? सबके मन में एक तूफ़ान फड़कता रहता है कि जो वो चाहे वैसा हो। "उम्मीद" एक इतना सशक्त और दृढ़ शब्द है जिसके दम पर ये दुनिया टिकी हुई है। उठते ही दिन के अच्छे … Continue reading उम्मीदें
अंतरजाल का जाल
अंतरजाल, आज थोड़े से भी पढ़े लिखे लोगों के लिए उनके जीवन का अभिन्न अंग हो गया है और पढ़े-लिखे ही क्यों, अशिक्षित लोगों के लिए भी यह कोई माया से कम नहीं है जो अपने जादू से उनको मोह लेती है।कम्प्युटर का प्रचलन भारत में एक विस्तृत पैमाने पर करीब ८-१० साल पहले ही … Continue reading अंतरजाल का जाल
दिखावा और हम – कब बदलेंगे हम?
लो एक साल और निकल लिया सस्ते में और हमें तो माधुरी भी नहीं मिली रस्ते में..कई लोगों ने सरकार के खिलाफ विरोध में नए साल के जश्नों को एक तरफ कर दिया। काबिल-ए-तारीफ़ है उनका जज्बा और हक़ की लड़ाई। और वहीँ कितने ही लोगों ने हर साल की तरह दारु पी कर हुडदंग … Continue reading दिखावा और हम – कब बदलेंगे हम?
भौतिकवाद की दोस्ती
बात ज्यादा पुरानी नहीं है, या यूँ कहें की ज़हन में तरोताज़ा है।कॉलेज का प्रथम वर्ष समाप्ति पर था। कई नए दोस्त बने थे, उनमें से धीरज भी एक था।प्रथम सेमेस्टर की समाप्ति पर मैं घर से कीबोर्ड (पियानो) खरीद लाया था क्योंकि हारमोनियम के बाद अब यह सीखने की बड़ी इच्छा थी।एक दफे मैं और धीरज क्लास से … Continue reading भौतिकवाद की दोस्ती
सामंजस्य
यह आलेख जनसत्ता में ३ दिसम्बर को छपा था। इ-संस्कार यहाँ पढ़ें। "सामंजस्य" अर्थात 'तालमेल', एक ऐसा शब्द है जिसकी सही पहचान और सही परख हम-आप करने से चूके जा रहे हैं। यह एक ऐसा शब्द है जो इस श्रृष्टि के पूरे वजूद को अपने अंदर समेटे हुए है। पर इस भाग-दौड़ वाली ज़िन्दगी (ज़िन्दगी? … Continue reading सामंजस्य
भ्रष्ट ज्ञान
यह लेख ६ अक्टूबर २०१२ को जनसत्ता में छपा था। ई-पेपर पढने के लिए यहाँ क्लिक करें। (संतोष त्रिवेदी जी का फिर से एक बार धन्यवाद!)"ज्ञानी", एक ऐसा शब्द है जिससे हम-आप खुद को पढ़े लिखे समझने वाले लोग समझते हैं कि अच्छी तरह से समझते हैं, भांपते हैं। पर क्या सच में आप इतने … Continue reading भ्रष्ट ज्ञान
संस्कार
रमेश बस स्टॉप पे खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था। दिन काफी व्यस्त रहा था ऑफिस में।स्टॉप से थोड़ा आगे बाईं ओर 2 मोहतरमाएं खड़ी थीं। एक के सलवार-दुपट्टे और एक के जींस-टॉप से समझ आ गया कि ये माँ-बेटी हैं और ज़रूर ही अपनी कार का इंतज़ार कर रही हैं। और दोनों के पहनावे से … Continue reading संस्कार