छोटे शहरों से आए लोगों को बड़ा शहर कितना या कितने दिनों तक भाता है, उसी सोच पर आधारित एक लेख।
बड़ा शहर vs अपना शहर
छोटे शहरों से आए लोगों को बड़ा शहर कितना या कितने दिनों तक भाता है, उसी सोच पर आधारित एक लेख।
साभार: गूगलराहुल मेरी-आपकी तरह एक आम आदमी, नौकरी करता है, घर आता है, घर चलाता है और फिर अगले दिन शुरू हो जाता है. अपने पितृगाँव से दूर है पर घर पर सब खुश हैं कि लड़का अपना अच्छा ओढ़-बिछा रहा है और घर की गाड़ी चला रहा है. अभी राहुल की शादी नहीं हुई … Continue reading सुनो, अरे सुनो!
ऐसा कब होता है जब आप एक भ्रामक अवस्था में धकेले जाते हों और वहीँ पर रह जाना चाहते हो? मेरे साथ तो ये तब होता है जब मैं वो फिल्में देखता हूँ जो असलियत को आपके चेहरे पर दे मारती है। ऐसी फिल्में जो सिर्फ परदे पर एक बनावट है पर हज़ारों जिंदगियों की … Continue reading आँखों देखी (फिल्म)
गुल्लक, एक ऐसा शब्द जो हमें अपने बचपन से जोड़ देता है। आज भी राह चलते किसी सड़क किनारे अगर मिट्टी के बिकते समानों में कहीं वो गोलगप्पम और ऊपर में टोपी की खूँटी लगा वो वस्तु दिख जाए तो अनायास ही मन में गुदगुदी दौड़ जाएगी और होंठों पे मुस्कान।गुल्लक:खुशियों का छोटा बक्सा (साभार: … Continue reading गुल्लक: खुशियों का छोटा बक्सा
१५ अप्रैल २००८ की एक रात को एक कमरे में बैठा था। सोच रहा था कि आज इस काम को अंजाम दे ही दिया जाए। रात भर खोज करता रहा और इस नवीन तकनीक का इस्तेमाल करने को आरूढ़ हो गया। कुछ भी घिसा-पिटा लिखा और अपनी ऊंघती हुई फोटो भी डाल दी और सुबह … Continue reading ६ साल: ब्लॉग, लेखन, तजुर्बा
वैसे तो ४ राज्यों में चुनाव हो गए हैं पर अभी लोक सभा चुनाव जैसा शेर आने को तैयार हो रहा है तो यह कृति तब के लिए भी उतना अर्थ रखेगी।यह कविता एक प्रतियोगिता के तहत लिखी थी पर उसका परिणाम आया नहीं है सो अब ब्लॉग पर डाल रहा हूँ। आशा है कि … Continue reading मेरा वोट, मेरा देश
"थूकना", यह एक ऐसा शब्द है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हर भारतीय बहुत ही परिचित और बहुत ही अनजान है। परिचित इसलिए क्योंकि वो इस क्रिया को दिन में कई बार करता है और अनजान क्योंकि वह यह प्रक्रिया अनायास ही करता रहता है। जिस कुशलता से हम साँस लेते हैं, उसी दक्षता से … Continue reading थूकन कला
कब तक इस नकली हवा की पनाह में घुटोगे तुम? आओ, सरसराती हवा में सुरों को पकड़ो तुमसंगीत बन जाओ तुम!कब तक ट्रैफिक की ची-पों में झल्लाओगे तुम?आओ, उस सुदूर झील की लहरों को सुनो तुमसंगीत बन जाओ तुम!कब तक अपनी साँसों को रुपयों में बेचोगे तुम?आओ, आज़ाद साँसों की ख्वाहिश सुनो तुमसंगीत बन जाओ … Continue reading संगीत बन जाओ तुम!
ऑडियो यहाँ सुनें:https://www.reverbnation.com/widget_code/html_widget/artist_1159585?widget_id=50&pwc%5Bdesign%5D=default&pwc%5Bbackground_color%5D=%23333333&pwc%5Bincluded_songs%5D=0&pwc%5Bsong_ids%5D=16995355&pwc%5Bphoto%5D=0&pwc%5Bsize%5D=fitप्रशांत एक सुशिक्षित और भद्र इंसान था। घर से दूर रहते ५-६ साल हो गए थे। अब नौकरी कर रहा था ३ सालों से। उससे पहले पढाई। दिल का बड़ा सख्त था। साल में २-३ बार ही घर आ पाता। नौकरी पेशा आदमी की सांस और आस दोनों उसके मालिक के हाथ में होती है। … Continue reading माँ का आँचल
काश ये ऐसा हो जाता, काश वो ऐसा हो जाये। पर ये, वो क्यों नहीं? पर वो, ये क्यों नहीं? सबके मन में एक तूफ़ान फड़कता रहता है कि जो वो चाहे वैसा हो। "उम्मीद" एक इतना सशक्त और दृढ़ शब्द है जिसके दम पर ये दुनिया टिकी हुई है। उठते ही दिन के अच्छे … Continue reading उम्मीदें