त्यौहारों का मौसम फिर से शुरू हो रहा है और हाँ छुट्टी का मौसम भी.. :)बारिश के अकाल की तरह छुट्टियों का यह अकाल हर नौकरी-पेशा इंसान को तंग करता है..अब त्यौहारों का मौसम भी एक ऐसे त्यौहार से जिसकी हमारी समाज में जड़ें बहुत गड़ी हुई हैं और जो समय के साथ-साथ अपने रंग … Continue reading त्यौहार, मौज-मस्ती, ज़िन्दगी!
सामाजिक खेल
समाज, एक ऐसा शब्द जो दर-ब-दर हमारे आस पास घूमता है.. मंडराता है.. डराता है.. धमकाता है.. बांधे रखता है.. इस शब्द से रिश्ता ज़िन्दगी के पहले अक्षर से जुड़ जाता है.. हम क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, कैसे उठे-बैठते हैं, कैसे चलते हैं, क्या कार्य करते हैं, किससे मिलते हैं, कहाँ जाते हैं, … Continue reading सामाजिक खेल
सरल या क्लिष्ट हिन्दी
एक अविरल भिन्नता जिसपर छोटी से बहस और सोच..
मधुशाला की राह
नौकरी में रमे हुए राकेश को १ ही साल हुआ था.. अपने कॉलेज में सबसे अच्छे छात्रों में शुमार था और नौकरी में भी अव्वल..जब अंटे में दो पैसे आने लगे तो मनोरंजन के साधन बदलने लगे.. जहाँ एक ढाबा ही काफी हुआ करता था दोस्तों के साथ, आज बड़े-बड़े होटलों में जाता था..कभी दारु-सिगरेट … Continue reading मधुशाला की राह
"भाग डी.के.बोस" का सरल हिन्दी अनुवाद
यह लेख मैंने काफी पहले लिखा था पर पोस्ट नहीं किया था । पहले ही बता दूं कि गीत की गहराई को समझते हुए इसके विश्लेषण को आराम से पढ़ें । पोस्ट की लम्बाई पर मत जाओ, अपना समय लगाओ 🙂 Daddy मुझसे बोला, तू गलती है मेरी तुझपे जिंदगानी guilty है मेरी साबुन की … Continue reading "भाग डी.के.बोस" का सरल हिन्दी अनुवाद
प्यार में फर्क
दिवाली का दिन था और विशेष अपने कॉलेज से घर छुट्टी पर आया हुआ था.. ठण्ड भी बढ़ रही थी और इसलिए विशेष के पिताजी अपने लिए एक जैकेट ले कर आये थे... विशेष ने जैकेट देखा तो उसे खूब पसंद आया और वह बोल उठा - "वाह पापा! यह तो बहुत ही अच्छा जैकेट … Continue reading प्यार में फर्क
बक-बक
फिर से आ टपका हूँ मैं ब्लॉग-जहां में.. किसलिए?अरे बस ये मत पूछिए.. बस यूँ समझिये की इधर से गुज़र रहा था तो सोचा की आप सबको साष्टांग प्रणाम करता चलूँ.. आशीर्वाद दिए बगैर भागिएगा मत यहाँ से..बहुत दिनों से सोच रहा था कि क्या लिखूं? क्या लिखूं? कुछ पल्ले नहीं पढ़ रहा है.. तो … Continue reading बक-बक
मौत से ज़िन्दगी
मनोज, एक सीधा-साधा मेहनती इंसान... कॉलेज से प्रथम श्रेणी में स्नातक और फिलहाल नौकरी पेशा..घर पर माँ, एक छोटा भाई और एक छोटी बहन का पूरा बोझ उसके ऊपर..प्रथम श्रेणी से पास होने के बावजूद एक मामूली नौकरी मिली थी बड़े शहर में.. कुछ से अपना गुज़ारा चलाता और बाकी घर पर भेजता..बहन की शादी … Continue reading मौत से ज़िन्दगी
कुत्ते की मौत
बहुत दिन हो गए नीचे वाली चंद पंक्तियों को.. मैं स्वतंत्रता दिवस का इन्तज़ार तो नहीं कर रहा था पर परिस्थितियों ने इस पोस्ट के लिए इसी दिन को मुनासिब समझा है.. क्या किसी को याद भी है कि आज से कुछ १ महीने पहले मुंबई में बम-ब्लास्ट्स हुए थे? शायद नहीं.. सबको हिना रब्बानी … Continue reading कुत्ते की मौत
परवरिश
संगीत के क्षेत्र में गुरूजी ने बहुत नाम कमाया था.. कई देशों और महफ़िलों की शान रह चुके थे वो..अब उनकी तमन्ना थी की उनकी दोनों बेटियाँ भी संगीत के क्षेत्र में उनकी तरह नाम करे और समाज और देश का भी सर ऊँचा करे..अच्छे ख्यालों से उन्होंने दोनों बेटियों को संगीत की शिक्षा-दिक्षा देनी … Continue reading परवरिश