रमेश बस स्टॉप पे खड़ा बस का इंतज़ार कर रहा था। दिन काफी व्यस्त रहा था ऑफिस में।स्टॉप से थोड़ा आगे बाईं ओर 2 मोहतरमाएं खड़ी थीं। एक के सलवार-दुपट्टे और एक के जींस-टॉप से समझ आ गया कि ये माँ-बेटी हैं और ज़रूर ही अपनी कार का इंतज़ार कर रही हैं। और दोनों के पहनावे से … Continue reading संस्कार
त्यौहार, मौज-मस्ती, ज़िन्दगी!
त्यौहारों का मौसम फिर से शुरू हो रहा है और हाँ छुट्टी का मौसम भी.. :)बारिश के अकाल की तरह छुट्टियों का यह अकाल हर नौकरी-पेशा इंसान को तंग करता है..अब त्यौहारों का मौसम भी एक ऐसे त्यौहार से जिसकी हमारी समाज में जड़ें बहुत गड़ी हुई हैं और जो समय के साथ-साथ अपने रंग … Continue reading त्यौहार, मौज-मस्ती, ज़िन्दगी!
सरल या क्लिष्ट हिन्दी
एक अविरल भिन्नता जिसपर छोटी से बहस और सोच..
"भाग डी.के.बोस" का सरल हिन्दी अनुवाद
यह लेख मैंने काफी पहले लिखा था पर पोस्ट नहीं किया था । पहले ही बता दूं कि गीत की गहराई को समझते हुए इसके विश्लेषण को आराम से पढ़ें । पोस्ट की लम्बाई पर मत जाओ, अपना समय लगाओ 🙂 Daddy मुझसे बोला, तू गलती है मेरी तुझपे जिंदगानी guilty है मेरी साबुन की … Continue reading "भाग डी.के.बोस" का सरल हिन्दी अनुवाद
बक-बक
फिर से आ टपका हूँ मैं ब्लॉग-जहां में.. किसलिए?अरे बस ये मत पूछिए.. बस यूँ समझिये की इधर से गुज़र रहा था तो सोचा की आप सबको साष्टांग प्रणाम करता चलूँ.. आशीर्वाद दिए बगैर भागिएगा मत यहाँ से..बहुत दिनों से सोच रहा था कि क्या लिखूं? क्या लिखूं? कुछ पल्ले नहीं पढ़ रहा है.. तो … Continue reading बक-बक
कुत्ते की मौत
बहुत दिन हो गए नीचे वाली चंद पंक्तियों को.. मैं स्वतंत्रता दिवस का इन्तज़ार तो नहीं कर रहा था पर परिस्थितियों ने इस पोस्ट के लिए इसी दिन को मुनासिब समझा है.. क्या किसी को याद भी है कि आज से कुछ १ महीने पहले मुंबई में बम-ब्लास्ट्स हुए थे? शायद नहीं.. सबको हिना रब्बानी … Continue reading कुत्ते की मौत
आत्महत्या
वो निःशब्द, निस्तब्ध खड़ी रही, हम हँसते रहे, फंदे कसते रहे, वो निर्लज्ज कर्ज में डूबती रही, हम उड़ती ख़बरों को उड़ाते रहे, वो रोती रही, सिसकती रही, हम बेजान खिलौनों से चहकते रहे, वो चीखती रही, चिल्लाती रही, हम अपने जश्न में उस आवाज़ को दबाते रहे, वो डरती रही, बिकती रही, हम … Continue reading आत्महत्या
५०० रूपए
सुधीर और मोहन बहुत ही करीबी दोस्त थे... सर्वसम्पन्न तो दोनों के परिवार थे पर एक जगह जा कर दोनों की राहें अलग हो जाती थीं | दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे और जैसा कि एक आम युवा-दिल होता है.. दोनों में काफी बहस छिड़ी रहती थी.. बालाओं को लेकर, परिवार को लेकर, … Continue reading ५०० रूपए
बदलाव खुद से
साहिल और राहुल, अन्य किसी भी कॉलेज के छात्र की तरह कभी-कभी देश पर चर्चा करने लगते थे..दोनों बहुत कोसते थे इस देश के प्रणाली को.. इस देश के तंत्र को... कम ही मौके ऐसे आते थे जब वो दोनों देश के बारे में कुछ भी सकारात्मक कहते हों...एक दिन दोनों एक स्वयंसेवी संस्था में … Continue reading बदलाव खुद से
कन्नू की “गाय” ते माँ का “Cow”
काफी महीनों बाद लिख रहा हूँ..कारण २ हैं.. पहला अनुपलब्धि अंतरजाल की और दूसरा अनुपलब्धि अच्छे विषय की...पर आज दोनों ही बाधाएं दूर हो गयी हैं और इसलिए लिख रहा हूँ..यूँ तो मैं लघु कथाएं लिखने लगा था पर आज एक लघु कथा ऐसी लिखूंगा जो कि मनगढंत नहीं है अपितु मेरे ही सामने घटा … Continue reading कन्नू की “गाय” ते माँ का “Cow”